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________________ चतुर्विशः स्वयमेव न भाति दर्पणः सन्न वह्निः स्वमुपैति' काष्ठभारः। न हि धातुरुपैति काञ्चनत्वं न हि दुग्धं घृतभावमभ्युपैत्यवीनाम् ॥ ३९ ॥ धनधान्यानि न यान्ति वृद्धिमत्र ननु यस्य भवेत्स्वभावपक्षः । [ ................... ] स तु दोषै बहुभिः परिप्लुतः स्यात् ॥ ४० ॥ नियतिनियता नरव्ययस्य प्रतिभग्नस्थितिकर्मणामभावः । प्रतिकर्मविनाशनात्सुखी स्यात्सुखहीनत्वमनिष्टमाप्तग्राह्यम् ॥४१॥ सर्गः दर्पणमें प्रतिच्छायाको प्रकट करनेको सामर्थ्य होनेपर वह अपने आप किसो प्रतिविम्बको झलक नहीं देता है । ईंधन आगको अजेय बना सकता है, किन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं है कि ईंधनका ढेर कर देनेसे ही ज्वाला भभक उठेगी । स्वर्णमिश्रित मिट्टी अथवा कच्ची धातु अपने आप ही सोना नहीं हो जाती है। तथा बकरियों का दुध बिना किसी प्रयत्नके अपने आप ही घी नहीं बन जाता है ।। ३९ ।। इस संसारमें धन तथा धान्य आदि जितनी भी सम्पत्तियाँ हैं वे बाह्य प्रयत्नके बिना स्वतः ही नहीं बढ़ती हैं । अब प्रश्न यह है कि जो व्यक्ति सब पदार्थोके जन्म वृद्धि आदिको स्वभावका ही काम मानता है-उसके यहाँ पदार्थों के अलग-अलग कारणों की क्या अपेक्षा होगी ? अर्थात् प्रयत्न व्यर्थ हो जायेगा और अकर्मण्यताको प्रश्रय मिलेगा। जिसमें एक दो नहीं अपितु अनगिनत । दोष भर जायेंगे ॥ ४० ॥ चामन्चमाचमामाचाच नियतिवाद जिस मनुष्यकी मान्यताके अनुसार नियति (पहिलेसे निश्चित जीवन, आदिका क्रम ) निश्चित ही है, वह घटायी । बढ़ायी नहीं जा सकती है, उसकी मान्यतामें कर्मोंकी स्थितिबन्ध (करनेके समयसे लेकर फलभोगके क्षण पर्यन्त रुकना) तथा प्रतिA भाग ( अनुभाग फल देनेकी सामर्थ्य ) का ही अभाव न होगा, अपितु कर्मोंका भी अभाव हो जायगा। कृतकर्मोका जब अभाव ही हो जायगा तो कर्मोके फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले सूख-दुःखका भी अभाव हो जायगा तथा यह जीव सुखहीन हो जायगा। । सुख आदिसे हीन हो जाना, न तो किसी जीवको ही अभीष्ट है और न संसारके हितैषी सच्चे आप्तोंके ही ज्ञानमें में आया था ।। ४१ ॥ । १. क समुपैति, हि वन्हित्वपमुति° ] २. [ नरस्य यस्य ] । [४७६] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain-Education intemational
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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