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________________ वराङ्ग चरितम् यदि कालबलात्प्रजायते चेद्विबल: कर्तृगुणः परीक्ष्यमाणः । बलवानथवा यदि कृती स्याद्विबलः काल इति प्रवेदितव्यः ॥ २८ ॥ अथ जीवगणेष्वकालमृत्युः फलपुष्पाणि वनस्पतिष्वकाले । भुजगा दशनैवंशन्त्यकाले मनुजास्तु प्रसवन्त्यकालतश्च ॥ २९ ॥ अथ वृष्टिरकालतस्तु दृष्टा न हि वृष्टिः परिदृश्यते स्वकाले । तत एव हि कालतः प्रजानां सुखदुःखात्मकमित्यभाषणीयम् ॥ ३० ॥ ग्रहतो जगतः शुभाशुभानि प्रलपन्तो विमतोन्प्रवञ्चयन्ति । न तु तस्वमिदं वचो यदि स्यात्स्वयमेवात्महितानि कि न कुर्युः ॥ ३१ ॥ कालवाद समीक्षा यदि काली ही यह सामर्थ्य है, कि उसके द्वारा संसारमें सब कुछ प्राप्त हो जाता है, तो कर्ताके गुण, जिनका सूक्ष्म तथा विशद विवेचन किया गया है वे सब निस्सार और निरर्थक ही हो जायंगे। इस अव्यवस्थासे मुक्ति पानेके लिए यदि आप यह कहें कि बलवान कर्ता ही इस कार्य में सफल होता है, तो फिर यही समझना पड़ेगा कि कालमें कोई भी कार्य करनेकी सामर्थ्य नहीं है ॥ २८ ॥ इसके अतिरिक्त देखा ही जाता है कि मनुष्य आदि जीवोंकी असमय में मृत्यु होती है। वनस्पतियों में भी असमयमें ही फूल फल लगने लगते हैं ( विशेषकर वैज्ञानिक युग में ) । आयु कर्म समाप्त नहीं होता है किन्तु साँप आदि विषमय प्राणी दाँत मार देते हैं और अकाल मौत हो जाती है ।। २९ ।। अधिकांश मनुष्य मुहूर्त आदि समयका विचार किये बिना ही बाहर जाते हैं और सफल होते हैं । वर्षाऋतु न होनेपर भी धारासार वृष्टि देखी ही जाती है, यह भी अनेक बार देखा गया है कि वर्षाके लिए निश्चित समय में भी एक बूंद जल नहीं बरसता है। इन सब कालके व्यतिक्रमोंका होना ही यह सिद्ध करता है कि 'काल के कारण संसारकी प्रजाको सुखी तथा दुखी होना पड़ता है' ऐसा कथन मुखपर भी नहीं लाना चाहिये ॥ ३० ॥ ज्योतिष्क ग्रहवाद 'ग्रहों की अनुकूलता तथा प्रतिकूलता के कारण ही संसारका भला अथवा बुरा होता है' जो लोग इस प्रकार का उपदेश देते हैं वे संसारके भोले अविवेकी प्राणियोंको साक्षात् ठगते हैं। क्योंकि यह सिद्धान्त तत्त्वभावसे बहुत दूर है। यदि यह सत्य हो तो, जो लोग इसपर आस्था करते हैं, इससे पहिले वे अपनी उन्नति तथा अभ्युदयके साधक, क्यों कर्म पर आस्था नहीं करते हैं ॥ ३१ ॥ Jain Education International For Private Personal Use Only चतुर्विधाः सर्गः [ ४७३] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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