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________________ चतुर्विका बकुलोत्पलजातिमालतीनां सुरभीणां सकदम्बचम्पकानाम् । ललनालककेशपाशबद्धा वरमालाश्च मुहुर्महः स जहौ ॥ ८॥ जिनदेवमहीन्द्रकेशवानां चरितान्यप्रतिमानि नाट्यसन्धौ । रसनाट्यसमन्वितानि शश्वत्समपश्यद्धरणीपतिः प्रियाभिः ॥९॥ वसुधोदधिशैलसंभवं यदररत्नं रजतं च हेम कुप्यम् । गजवाजिरथायुधप्रधानं क्षितिकार प्राभृतकं समानयंस्तत् ॥१०॥ विधिना परिपालकः प्रजानां परिशास्तार नुष्ठितक्रियाणाम् । अगतीनबुधाजनान् दरिद्रानशरण्यांश्चबभार सर्वकालम् ॥११॥ समः ATHMARATHIPARAMHITA रानियाँ अपना शृगार करनेके लिये कमल, बकुल जाति ( चमेलो) मालतो, कदम्ब, चम्पक आदि वृक्षोंके सुगन्धयुक्त पुष्पोंकी मालायें बनाकर अनेक विधियोंसे अपने केशोंमें गंथती थीं। किन्तु कामके आवेगसे उन्मत्त राजा बिल्कुल उच्छृखल होकर बड़ी शीघ्रताके साथ बार-बार शिरपर सजो हुईं मालाओंको खींचकर मसल देता था ।। ८॥ जिनेन्द्रप्रभुके जीवन चरित्र, चक्रवतियों, नारायणों, प्रतिनारायणों, आदि शलाका पुरुषोंको अनुपम तथा आदर्श जीवनीकी कथावस्तुको लेकर लिखे गये नाटकोंके अभिनय रसोंकी स्फूर्ति तथा अभिनय कलाके पूर्ण प्रदर्शनके साथ सदा ही किये जाते थे, और सम्राट वरांगराज अपनी सब हो रानियोंके साथ इन्हें देखकर रसका आस्वादन करते थे ॥ ९॥ वसुन्धरा, पृथ्वी, अगाध उदधि तथा पर्वतोंमें जो भी उत्तम रत्न ( श्रेष्ठ पदार्थ ) उत्पन्न होते थे अथवा जितना भी चाँदी तथा सोनेका भण्डार हो सकता था अथवा मदोन्मत्त हाथी, सुलक्षण अश्व, सुदृढ़ रथ तथा श्रेष्ठ शस्त्र आदि सभी वस्तुओंको सनस्त राजा लोग भेंट रूपसे सम्राट वरांगके सामने लाकर रखते थे ॥ १० ॥ पुण्य परिपाक राजनीतिमें बतायी गयी विधिके अनुसार ही वह अपनी प्रजाको हानिसे बचाकर लाभकी दिशामें ले जाता था। जो लोग सामाजिक धार्मिक अथवा अन्य किसी भी प्रकारका कुकर्म करते थे ऐसे लोगोंकी वह किसी भी दृष्टि अथवा कारणसे उपेक्षा नहीं करके कठोर दण्ड देता था। निरुपाय व्यक्तियों, ज्ञान अथवा किसी भी प्रकारकी शिक्षाको प्राप्त न करनेके कारण आजीविका उपार्जन करनेमें असमर्थ, दरिद्र तथा अशरण व्यक्तियोंका वह राज्यकी ओरसे पालन-पोषण करता था ॥ ११ ॥ १. म प्रदानं। २. [क्षितिपाः]। ३. [ °शास्ता दुरनुष्ठित°]। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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