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________________ वराङ्ग प्रथमः चरितम् सर्गः सर्वाः स्त्रियः प्रथमयौवनगर्ववन्त्यः सर्वाः स्वमातृपितृगोत्रविशुद्धवन्त्यः । सर्वाः कलागुणविधानविशेषदक्षाः सर्वा यथेष्टमुपभोगपरीप्सयिन्यः ॥ ५९॥ चातुर्यहावगतिविभ्रमत्क्रियाभी रूपेण ता तिमतातिमनोहरेण । सत्यन्तरे समनुकलतयानुभय राज्ञो मनस्यधिगता वनितास्तदासन ।। ६०॥ हासेन वा मधुमदेन सवितेन रागेण वाथ कलुषीकृतचेतसा वा । अन्योन्यमर्मपरिहासकथाभिरामा राज्ञः स्त्रियस्त्विति कथा न बभूव लोके ॥ ६१ ॥ धर्मप्रियस्य रतिनोतिविशारदस्य सामान्यदृष्ट्यभिनिवि [ष्ट ] तायात् ? नात्युद्धताः सममुखाः२ पतिवत्सलाश्च शीलानुरक्तहृदया वनिता विनीताः ॥ ६२॥ तासु क्षितीन्द्रहृदयप्रियकारिणीषु माधुर्यकान्तिललितप्रतिभान्वितासु । रेजे भृशं गुणवती क्षितिपाङ्गनासु तारागणेष विमलेष्विव चन्द्रलेखा ॥६३॥ __ उन सबके ही माताओं और पिताओंके वंश परम शुद्ध व सदाचारी थे। एक भो रानी ऐसी न थी, जिसने ललित कलाओं, श्रेष्ठ गुणों और विशेष विधानोंमें असाधारण पटुता प्राप्त न की हो। सबकी सब यौवनके प्रथम उभारसे मदमाती हो रही थीं। फलतः सबकी सब मनभर प्रेमका उपभोग करनेके लिये लालायित थीं॥ ५९॥ यद्यपि उनकी चतुराई, चाल, हावभाव, आचरण, शृंगार, आदर सत्कार और अत्यन्त कान्तिमान मनमोहक सौन्दर्यमें भेद था, तो भी उन सवकी सब रानियोंने अपनी स्वाभाविक विनम्रता और आज्ञाकारिताके द्वारा राजाके मनपर पूर्ण अधिकार । कर लिया था ॥ ६ ॥ इन रानियोंने हँसी-हँसीमें या मदिराके नशेमें, या अहंकारके आवेगमें, या किसीकी प्रीतिके कारण अथवा किसीसे कोई मनोमालिन्य करके मनोविनोदके लिए किसी सखोकी गुप्त बात प्रकट की है या किसीसे दिल दुखानेवाली बात की है, ऐसी चर्चा भी कभी लोगोंके मुखसे न सुनी गयी थी॥ ६१ ॥ यै सब हो रानियाँ पतिको प्यारी थीं और स्वयं भी पतिसे गाढ़ प्रेम करती थीं। एकका भी व्यवहार वद्धत न होता था। सबकी सब एकसी सुखी थीं। इनका हृदय शीघ्रव्रतके रंगसे रंगा था ओर सब ही अत्यन्त विनम्र थीं क्योंकि परम धार्मिक तथा सुरत कला और राजनीतिके पंडित महाराज धर्मसेन बिना भेदभावके सबको एक ही दृष्टिसे देखते थे ।। ६२ ।। ये सब ही रानियाँ स्वभाबकी मधुर थीं। शरीरमें क्रान्ति ओर लावण्य फटे पड़ते थे और बुद्धि प्रतिभा सम्पन्न थी। 11. [ कामकभारपति ]। २. [ समसुखाः] । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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