________________
वराङ्ग
त्रयोविंश
चरितम्
सर्गः
R RRRAHAMIRSIOराम
तस्मिन्पृथुश्रीमति राजगेहे पुरोहितेनातिहितेन राज्ञः । द्रव्यं जिनानां स्नपनक्रियाथं संभारयां बुद्धिमता प्रचक्रे ॥ १७॥ आपः पयः पुष्पफलानि गन्धा यवाज्यसिद्धार्थकतण्डुलाश्च । लाजाक्षताः कृष्णतिलाः सदर्भा अाणि दध्ना रचितानि तत्र ॥ १८॥ आपो हि शान्त्यर्थमुदाहरन्ति आप्यायनायं हि पयो वदन्ति । कार्यस्य सिद्धि प्रवदन्ति दना दुग्धात्पवित्रं परमित्युशन्ति ॥ १९॥ दीर्घायुराप्नोति च तण्डुलेन सिद्धार्थका विघ्नविनाशकार्थाः। तिलविवृद्धि प्रवदन्ति नृणामारोग्यतां याति तथाक्षतैस्तु ॥ २०॥ यवैः शुभं वर्णवपुर्घतेन फलैस्तु लोकद्वयभोगसिद्धिः । गन्धास्तु सौभाग्यकरा नराणां लाजैश्च पुष्पैरपि सौमनस्यम् ॥ २१ ॥
सब प्रकारको सम्पत्तिसे परिपूर्ण तथा विशाल शोभाके भण्डार उस राजगृहमें सम्राटके पुरोहित पूजा कार्यों में ही लगे रहते थे अतएव उनके द्वारा ही जिनेन्द्रदेवकी पूजाके लिये आवश्यक अष्टद्रव्य तथा अभिषेकमें उपयोगी समस्त साज समारम्भ महाराजके लिए बड़ी बुद्धिमत्ताके साथ तैयार कराया गया था ।। १७ ।।
जल, चन्दन, तण्डुल, पुष्प, फल, जौ, सरसों, अक्षत, कृष्णतिल, लावा, दूध, दही, घी, सुन्दर दूब, कुश, सुगन्धित द्रव्य, आदि अयं और अभिषेकमें आवश्यक सब सामग्री तथा उपकरण बहाँपर सजे रखे थे ।। १८ ।।
द्रव्योंका विशेष फल जन्म-जरा-मृत्यु आदिको शान्तिके लिए जल चढ़ाते हैं, विषय वासनाओंको सर्वथा मिटानेके लिये पय ( दूध ) से पूजा करते हैं, दधिके द्वारा पूजा करनेसे कार्यसिद्धि होती है, दूधसे पूजा करनेसे परम पवित्र धाम ( मोक्ष ) में निवास प्राप्त होता है ।। १९ ।।
शुद्ध तण्डुलोंसे जिनेन्द्रदेवके चरणोंकी उपासना करनेका फल दीर्घ आयु होती है, सिद्धार्थक (पीले सरसों) की बलि ! प्रभुके समक्ष समर्पित करनेका अवश्यम्भावी परिणाम यही होता है कि इष्टशिष्ट कार्यों में किसी भी रूपमें विघ्नबाधा नहीं आती है। जो पुरुष तिलोंकी बलिका भक्तिभावसे उपहार करते हैं वे संसारमें सब हो दृष्टियोंसे वृद्धिको प्राप्त करते हैं ॥ २०॥ [४४४]
शुद्ध तथा अखण्डित अक्षतोंको पूजाका परिपाक होनेसे मनुष्य निरोग होता है । यवके उपहारका अटल फल सब दृष्टियोंसे कल्याण है, घृतके उपहारका परिणाम सुरूप और स्वस्थ शरीर होता है, भक्तिभावपूर्वक फलोंके चढ़ानेसे इस लोकमें ॥ ही नहीं अपितु परलोकमें भी इच्छानुसार परिपूर्ण भोग प्राप्त होते हैं। सुनन्धमय पदार्थों की अंजलि करनेसे प्राणी अपने तथा
For Privale & Personal Use Only
EDITEDAAR
Jain Education international
www.jainelibrary.org