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________________ बराङ्ग त्रयोविंशः सर्गः चरितम् सौवर्णरौप्यामलताम्रकांस्यादिन्द्रादिदिक्ष' प्रणिधानयोग्यान । विभागवित्तं तु यथानुसंख्यं पात्रप्रकारानचयांबभूवुः ॥ २२ ॥ 'सनादकाकाञ्चनका घटाश्च भृङ्गारिकापालिकवर्तकानि । शङ्खादिनानाकृतिभाजनानि प्रापूय यन्त्राणि हरिन्मयानि ॥ २३ ॥ नदीजलं प्रश्रयणोदकं च कौप्यं च वाप्युद्भवसारसं च । तडागतीर्थोद्भवपुण्यतोयं पुरोधसा संजगृहे यथावत् ॥ २४ ॥ पयोदधिक्षीरघृतादिपूर्णा फलानपुष्पस्तबकापिधाना। घटावली दामनिबद्धकण्ठा सुवर्णकारैलिखिता रराज ॥ २५ ॥ मायामामाच्यIAGREZARRETAI परायोंको स्नेहभाजन होता है। उसे देखकर ही लोग आह्लादित होते हैं ! लावा तथा फूलोंके उपहारका परिणाम जब उदयमें आता है तो प्राणोका हृदय तथा बुद्धि निर्मल और स्थिर होते हैं ।। २१ ।। दिक्पाल पूजा दूसरे प्रतिष्ठाचार्य जिन्हें दिशाओंके अधिपतियों ( दिक्पालों ) तथा उनके प्रिय अतएव योग्य पात्रोंकी धातु, आदिके विवरणका विशेष ज्ञान था उन लोगोंने ही इन्द्रकूट जिनालयके पूजा मंडपमें शुद्ध सोने, चाँदी, निर्मल ताम्बे, कांसे, आदिके पात्र बनवा कर इन्द्र आदिके पदका ध्यान रखते हुए; संख्या और क्रमके परे विचारके अनुकूल स्थापित करवाये थे ।। २२ ॥ अभिषेक मण्डपमें बड़ी-बड़ी नादें, सोनेके शंख, आदिके सदृश अनेक आकार और प्रकारोंमें बने हुए कलश, झारियाँ, पालिकाएँ (थालीसे गोल घड़े ) आवर्तक (घुमावदार पात्र ) आदि पात्र तथा सोनेसे ही बने अनेक यन्त्र रखे हुए थे ॥ २३ ॥ इनमें नदियोंके पवित्र जल, झरनोंके धातुओंके रसमय जल, कूपोंके नीर, बावड़ियोंसे भरा गया जल, जलाशयोंके नीर, तालाबोंका जल तथा तीर्थस्थानोंके परम पवित्र जलको पुरोहितने विधिपूर्वक ला कर भर दिया था ।। २४ ॥ अभिषेक सज्जा सोने-चाँदी आदिके कितने हो कलश दूध, दही, पय ( विशिष्ट पानी ), घी आदि अभिषेकमें उपयोगी द्रवोंसे भरे रखे हुए थे, यह सब कलश मुखपर रखे हुए श्रीफल आदि फलों, फूलोंके गुच्छों तथा पत्तोंसे ढके हुए थे। प्रत्येक कलशके गलेमें 4 मालाएँ लटक रही थीं। इस सब शोभाके अतिरिक्त सुवर्णकारोंके द्वारा इनपर खोदी गयी चित्रकारीकी शोभाका तो वर्णन [४५] करना ही कठिन था ॥ २५ ।। 1 १. म ताम्रकस्स्यादिन्द्रादि, [ ताम्रकास्यानिन्द्रादि° ]। २. क प्रणिदान। ३. सनादता। ४. म पुटाश्च । Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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