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________________ बराङ्ग चरितम् == अपने लुप्त हो जाने पर युवराज पदपर बैठाये गये राजपुत्र सुषेणको भी वह विशाल राज्य देना चाहता था किन्तु उसके पास कोई ऐसा देश हो न रह गया था जिसे सुषेणके साथ बाँटता । एक दिन यों ही बैठा हुआ वह इसी समस्याका हल सोच रहा था कि उसे अकस्मात् वकुलेश्वरका स्मरण हो आया, जिसने उसके पीछे उत्तमपुर पर आक्रमण करके उस ( वरांग ) के पिता के साथ अक्षम्य अपराध किया था ।। ५८ ।। ततः सुषेणाय युवाधिपाय तां महीमपश्यन्नथ संविभाजितम् । विमृश्य सस्मार यदृच्छया पितुः कृतापराधं च कुलाधिपं तदा ॥ ५८ ॥ गुरुं मदीयं परिभूय दुर्दमो विनाश्य देशं प्रविलुप्य गोधनम् । विगृह्य योद्धु ं पुनरागतो बलैः प्रवृद्धभोगोच्छ्रितमान दर्पितः ॥ ५९ ॥ तथैव शौयं त्वभिमानसंभवं तदस्ति चेद्योद्धमिहेतु सांप्रतम् । उत प्रभावो न च तस्य विद्यते विमुच्य देशं वनमभ्युपेतु वा ॥ ६० ॥ इति प्रगत्मसखासमक्षतो व्यपेतसामं प्रतिलेख्य लेखकम् । वचोहरानाप्ततमान्मवस्थिनः शशास सद्यश्च कुलाधिपान्तिकम् ॥ ६१ ॥ 'जब मैं उत्तमपुरमें नहीं था उस समय अपनी बढ़ती हुई शक्ति और सम्पत्तिका वकुलेश्वरको इतना अहंकार हो गया था कि वह उसके उन्मादमें अपने आपको अजेय और दुर्दम समझने लगा था। परिणाम उह हुआ कि उसने मेरे पूज्स पिताकी अवहेलना ही नहीं की थी अपितु उत्तमपुर राज्यके काफी बड़े भागको नष्ट कर दिया था, जो धन आदिको लुटवा लिया था तथा चारों ओरसे अपनी सेना के द्वारा घेरकर लड़नेके लिये आ पहुँचा था ।। ५९ । शत्रुमर्दन यदि आज भी वैसा ही अभिमान है और उसके उन्मादसे उत्पन्न पराक्रमका भी वही हाल है तो दुर्दम वकुलेश्वर मुझसे लड़ने के लिए आनर्तपुरपर अब शीघ्र ही आक्रमण करें। अथवा यदि अब वह प्रभाव नहीं रह गया है तो उनके लिए अब एक ही मार्ग है कि वह शीघ्र से शीघ्र अपने देशको छोड़कर वनको चले जांय ॥ ६० ॥ इन शब्दोंको कहते हुए ये अपनी राजसभामें बड़े जोरोंसे गर्जे थे तथा उसी समय वकुलेश्वरको पत्र लिखवाया था जिसमें 'साम' की छाया भी न थी । लेख प्रस्तुत हो जानेपर अपने अत्यन्त विश्वस्त दूतोंको आत्मगौरवके प्रतिष्ठापक वगराज नन्त ही वकुलाधिपकी राजधानीको भेज दिया था ।। ६१ ।। १. म वकुलाधिपं । Jain Education International For Private & Personal Use Only एकविंश सर्गः [ ४१४ ] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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