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________________ एकविंशः आदाय तन्मानुषवजितं वनं निवेशयिष्यामि तवाभ्यनुज्ञया । यदि प्रसादो मयि विद्यते प्रभो विमुञ्च मा भूदुपरोध एष ते ॥ २१ ॥ निशम्य पुत्रस्य वचो महीपतिर्जगाद वाक्यं हृदयङ्गमाक्षरम् । त्वमेव पुत्रः शरणं गतिश्च मे विहाय यातुन हि मामतोऽर्हसि ॥ २२॥ य एवमुक्तो जनकेन सोऽभ्यधादवैमि राजन्ननुरागमात्मनि । तथापि मे बुद्धिरियं विज़म्भते पूर्वदेशग्रहणाय शाधि माम् ॥ २३ ॥ इति ब्रुवन्तं गमने दृढव्रतं विबुध्य राजा प्रियमात्मनः सुतम् । मनोरथानां परिवृद्धिसंपदस्तवाचिरात्सन्त्विति मुक्तवान्सुतम् ॥ २४ ॥ सर्गः KARELASSEURSHEELAGIRISPEASARARIA हे जनक ! यदि आपकी आज्ञा हो तो आपके धाचरणोंके प्रसादसे मैं अपने राज्य भागमें वर्तमानमें मनुष्योंकी बस्तियोंसे सर्वथा रहित वनको हो लेकर वहाँ पर नये नगरोंको बसाऊँगा। यदि आपका मुझपर सत्य स्नेह है तो मुझको जानेकी आज्ञा दीजिये, किसी भी कारणसे मझको रोकिये मत ।। २१ ।। पितृ-वात्सल्य पुरुषार्थी पुरुषसिंहके लिए सर्वथा उपयुक्त पुत्रके वचनोंको सुनकर महाराज धर्मसेनने उत्तर दिया था उसका एक-एक शब्द हृदयमें घर लेता था 'हे पुत्र ! वास्तवमें तुम ही मेरे पुत्र कहे जा सकते हो, वृद्धावस्थामें मुझे तुम्हारा सहारा है और तुम्ही मेरे जीवनके अन्तिम दिनोंका भलीभांति निर्वाह कर सकते हो। इन सब कारणोंसे मुझे छोड़कर कहीं और चला जाना तुम्हें शोभा नहीं देता है ॥ २२॥ पूज्य पिताके हृदयसे निकले शब्दोंको सुनकर युवराज वरांगने इतना ही कहा था 'महाराज' ! मुझे ज्ञात है कि आप मुझपर कितना अधिक स्नेह करते हैं। तो भी मेरी बुद्धि रह-रहकर इसी दिशामें जाती है। अतएव आपसे निवेदन है कि आप मुझे नूतन देशोंको जीतनेकी आज्ञा अवश्य दे दें ।। २३ ॥ दिविजय-अनुज्ञा युवराज वरांगके इन वचनोंसे राजाको स्पष्ट आभास मिल गया था कि उनके प्राणप्रिय पुत्रने विजय यात्रापर जानेका दृढ़ निश्चय कर लिया था। तब उन्होंने प्रकट रूपसे भी कह दिया था 'हे पुत्र! तुम्हारी राज्य, आदि सब ही लक्ष्मियां दिन ॥ दूनी और रात चौगुनी बढ़े तथा तुम्हारे समस्त मनोरथ शीघ्रसे शीघ्र पूर्ण होवें ॥ २४ ॥ याचाचELESEATUREDIESELasa [४०५) Jain Education intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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