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________________ एकोनविंशः चरितम् यत्प्रार्थितं राजसुते त्वया तु तत्सर्वमाचक्षितमन्वियाय । सोऽप्यादरेणानुमतः क्रियार्थः प्रकाशयामात्ममनो बभूव ।। ७३ ॥ तस्मात्सुखं साध्वि सखोभिरास्स्व स्नात्वा हि भुक्ष्व त्वमलंकुरुष्व । द्वित्रिष्वहस्तु प्रतिपादयिष्ये शोकं विनुद्य स्थिरधी व त्वम् ।। ७४ ।। मद्विप्रलम्भार्थमयं प्रयोगः श्रोत्रप्रियः केवलमर्थदूरः । ज्ञातुमया मन्दधिया हि शक्यं धन्या न जाताश्च मता युवत्यः ॥७५ ॥ एवं वदन्ती व्यपयातहर्षा सरोदनारोपितरक्तदृष्टिः। फलोदयं स्वस्य पुराकृतस्य पुनः पुनस्तं तरुणो 'जहार्ह ॥ ७६ ॥ सर्गः था। अतएव उसके पाससे लौटकर वह सीधी राजपुत्रीके पास पहुँचा थी। कामदेवको पाशमें फंसी आपाततः अत्यन्त विकल मनोरमा को ढाढस बंधानेकी इच्छासे उसने इस प्रकार से कहना प्रारम्भ किया था ।। ७२ ।। हे राजपुत्रि! तुमने जो कुछ भी प्रार्थना की थी उस सबको मैंने तुम्हारे प्रियसे भो कह दिया है तथा वह उसके अनुकूल है। उसने बड़े आदर के साथ इस कार्यको स्वीकृति हो नहीं दो है अपितु अपने मनके गूढ़तम भावोंको भी प्रकट कर दिया है । ७३ ॥ _ नैतिकता ही परम नीति अतएव हे साध्वि! अपनी सखियोंके साथ आनन्दपूर्वक समय व्यतीत करो, उठो स्नान आदिसे निवृत्त होकर भोजन करो और अपना पूरा शृंगार करो, दो तीन दिनके भीतर ही तुम अपने मनोरथ के प्रियतमके पास पहुँच जाओगी। अब शोकको । दूर करो तथा चंचलताको छोड़कर स्थिर बनो' ।। ७४ ॥ 'मुझे धोखा देनेके लिए ही तुम यह सब जाल रच रहो हो । यह केवल सुननेमें हो सुखद है, क्योंकि अभिलषित अर्थकी प्राप्ति तो बहुत दूर प्रतीत होती है । मैं मन्दबुद्धि अवश्य हूँ पर इतना ता समझ ही सकती हूँ। क्या ही अच्छा होता यदि इस पृथ्वी । पर युवतियाँ उत्पन्न हो न हाती अथवा उत्पन्न होते ही मर जाती ।। ७५ । नारीको भोहता इन तथा ऐसे ही अन्य वचनोंको पुनः-पुनः कहकर तरुणी राजनन्दिनी अपने पूर्व जन्ममें किये गये शुभ-अशुभ कर्मोंके । फलोंका स्मरण करके उनकी खूब निन्दा करती थी। आशासे जो थोड़ा बहुत हर्ष उसको हो रहा था वह भी जाने कहाँ लुप्त हो गया था, वह लगातार रो रही थी इसी कारण उसकी आंखें बिल्कूल लाल हो गयी थीं ।। ७६ ॥ MAHARASHTRANSHeresTrutraERATRAIHIMSHAHARASHTRA [३७५] १. [ जगह ]। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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