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________________ वराङ्ग एकोनविंशः चरितम् wwsARMAmazAT.... यत्पूर्वमाख्याय सदस्सु राज्ञां तत्प्रत्यनीकं न च युक्तिमेति । महाजनानां परिहास एष धर्मस्य चात्यन्तविरुद्धमेतत् ॥९॥ ब्रवीति चक्षुर्मनसो विकारं ब्रवीति सौख्यं वपुषश्च शीभा। कुलं हि नृणां विनयो ब्रवीति इत्येवमुक्तं सदसि प्रधानैः ॥ १०॥ स्वमन्त्रिभिः स्वस्य हितं ब्रवदिभस्तथा त्वनज्ञातमिदं मयेति । कन्या'प्रदाने कृतनिश्चयोऽभून्मदा नरेन्द्रो मतिमान्विधिज्ञः ॥ ११॥ ततो नरेन्द्रो विजयप्रधानैः समेत्य बद्धैः पुरवासिभिश्च । प्रहृष्टचेताः कृतसत्यसन्धो विवाहकार्याय शशास सर्वान् ॥ १२॥ सर्ग: HORTRAILERDARSHERE AIRTHEAST-SurmepreARHWARE वजनके धनी देवसेन राजसभा पहिले जो घोषणा को थी बादमें उसके विपरीत ही नहीं उससे थोड़ा भी कम कार्य करना राजाओंको शोभा नहीं देता है, उसका किसो युक्तिसे समर्थन भी नहीं किया जा सकता है तथा वह धर्मके सर्वथा प्रतिकूल है । अतएव ऐसा कार्य होनेसे सज्जन पुरुष भी परिहास ही करते हैं ॥९॥ आँखका रंगरूप या चेष्टाएँ हो मनुष्यके मनमें उठनेवाले विचारों और भावोंको व्यक्त कर देते हैं, शरीरकी कान्ति ही। मनुष्यके सुखी कुलीन जीवनका विज्ञापन करती है, इसी प्रकार मनुष्यके कुलको महत्ताको उसकी आचार-विचार सम्बन्धी विनम्रता ही खोल कर दिखा देती है। राज्यके प्रधानोंने इस प्रकारसे कश्चिद्भटके विषयमें आग्रह किया था ॥ १० ॥ राजाके कल्याण तथा अभ्युदयकी सम्मति देनेवाले अपने मंत्रियोंको उक्त प्रकारको अनुमतिको देखकर महाराज देवसेनने कहा था 'मेरे द्वारा भी आप लोगोंका पूर्ण समर्थन किया जाता है।' इसके उपरान्त लोकाचारके विशेषज्ञ तथा विवेको महाराजाधिराजने प्रसन्तापूर्वक कन्या समदत्ति रूपसे देनेका निश्चय किया था।॥ ११ ॥ इस निर्णयपर पहुँचते ही ललितेश्वरने विजय आदि महामंत्रियों, श्रेणी, गणोंके प्रधान अनुभवी वृद्ध नागरिकोंके साथ महोत्सवके विषयमें विगतवार विमर्ष किया था। अपनी प्रतिज्ञाको पूर्ण कर सकनेके कारण अत्यन्त प्रमुदित महाराजने नगर तथा । राज्यके सब हो अधिकारियोंको विवाह-मंगलको तैयारी करनेका आदेश दिया था ॥ १२ ॥ G ERMIREOSADERS [३६१] १. म किंतु प्रदनि सुविचार्य कार्य कन्याप्रदाने कृतनिश्चयोऽभृत् । Jain Education interation XE For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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