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________________ बरा अष्टादशः सर्गः अवश्यमन्यत्र महाकृतिभ्यामाभ्यां सहैवाचरितं तपः स्यात् । तदेतदुद्भुतफलप्रपञ्चं सुव्यक्तमासीदिति काश्चिदूचः ॥ १२८ ।। इत्येवं ललितपुराधिवासिनीभिः प्रीत्या तौ कथितौ विलासिनीभिः । तेनैव क्षितिपतिना वणिक्युतौ संप्राप्तौ नृपगृहमृद्धिवृद्धिशालम् ॥ १२९ ॥ राज्ञीभिर्मदनरसं प्रदायिनीभिः कान्ताभिः प्रचलितचारुभूषणाभिः । युद्धश्रीश्रुतिसंकथारताभिर्हृष्टः स [--] नृपतिरथाविशत्स्वगेहम् ॥ १३०॥ इति धर्मकथोद्देशे चतुर्वर्गसमन्विते स्फुटशब्दार्थसंदर्भे वरांगचरिताश्रिते कश्चिद्भटविजयो नाम अष्टादशः सर्गः। GurunagricuERIम करता है । किन्तु आज इस ब्लोम (उल्टी रीति) को भी देख लो, करता कोई (कश्चिद्भट) है और भोगता दूसरा ( सागरवृद्धि) ही है १२७ ।। अवश्य ही इन दोनोंने किसी पूर्व पर्यायमें एक ही साथ तप आदि पुण्य कार्य किये होंगे। इसमें सन्देह नहीं हैं तो दोनों ही उदार पुण्य-कार्यकर्ता, उसीका यह परिणाम है जो ये दोनों इस विचित्र ढंगसे उदयमें आये पुण्य फलको इस प्रकार भोग रहे र हैं, यह बात सर्वथा स्पष्ट है।' इस प्रकार शेष देवियोंने अपनी सम्मतिको प्रकट किया था ॥ १२८ ।। गुणोंके अनुरागसे प्रेरित होकर ललितपुरकी कुल ललनाएं उक्त विधिसे सार्थपति तथा कश्चिद्भटके विषयमें चर्चा कर रही थीं। उसे सुनते हुए ही वे दोनों महाराजके साथ-साथ प्रधान राजमार्गसे चलते हुए राजभवन पर जा पहुँचे थे, जो कि अपनी सम्पत्ति तथा विशाल शोभाके कारण जगमगा रहा था ।। १२९ ।। कामदेवके रसको बढ़ानेवाली महारानियों तथा उन देवियोंके द्वारा जिनकी स्वाभाविक चंचलताके कारण उनके सुन्दर अलंकार हिल रहे थे, तथा जो सब युद्धके समाचारोंकी ही बात करने में लीन थीं ऐसी रानियों और अन्य देवियोंके द्वारा देखे गये [श्रेष्ठ] महाराज देवसेनके साथ ही कश्चिद्भटने राजमहलमें प्रवेश किया था ॥ १३० ।। चारों वर्गसमन्वित सरल-शब्द-अर्थ-रचनामय बरांगचरित नामक धर्मकथा में कश्चिद्भट-विजय नाम अष्टादश सर्ग समाप्त । रामचBिALASAHERISPERIES [३५८] १. क ऋद्विवृद्विशालम् । [ ऋद्धिमद्विशालम् । २. [ रसप्रदायिनीभिः ।। Jain Education intemational For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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