SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टावक्षः स्वभावतः शूरतमाः कृतास्त्रा लब्धाभ्यनुज्ञाश्च पुन पेण । इतस्ततः शत्रुचमू वरास्त्रैनन्तो विचेरुयुधि कालकल्पाः ॥५॥ एवं प्रवृत्तं समरं सुघोरं महार्णवक्षुब्धतरङ्गलोलम् । शस्त्रातिसंघट्टनजातवह्नि समीक्ष्य राजा च तदेन्द्रसेनः ॥६॥ बलाहकाख्यं वरवारणेन्द्रं द्रुतं समारुह्य गृहीतशस्त्रः । षड्भिर्गजानां तु वृतः सहस्रः किमास इत्येतदथाजगाम ॥ ७॥ आयान्तमालोक्य तदिन्द्रसेनं' महेन्द्रविक्रान्तमपारवीर्यः । करीन्द्रवृन्दैविजयोऽभ्युपेत्य पुरःसरी तस्य चम् रुरोध ॥८॥ सर्गः REASURGETrailssuspensEURDER पर आरूढ़ होकर सेनाके साथ चले आये थे । महाराज देवसेनने इन सबको भी उस अन्तिम युद्धमें भाग लेनेके लिए आज्ञा दी थी॥४॥ शस्त्रकलाके विशेषज्ञ महावीरोंको स्वभावसे ही युद्धमें आनन्द आता था, इसपर भी उस समय तो उन्हें महाराजको आज्ञा प्राप्त थी। परिणाम यह हुआ कि वे अपने तीक्ष्ण शस्त्रास्त्रोंके द्वारा शत्रुसैन्यको मारते हुए इधर-उधर दौड़ते फिरते थे। उस समय वे संग्राम भूमिमें घूमते हुए साक्षात् यमोंके समान मालूम देते थे ॥ ५॥ ललितपुरके देशभक्त वीर तूफान आने पर समुद्र क्षुब्ध हो जाता है तथा उसमें ऊँची भीषण लहरें उठनेपर जो दृश्य होता है, वही उस समय चलते हुए घोर तथा दारुण संग्रामका भी हाल था । शस्त्र इतने बल तथा वेगसे चल रहे थे कि उनके आपसमें टकराने पर आगके तिलंगे निकल पड़ते थे ।। ६ ।। मधुराधिपका आक्रमण इनको देखते ही मथुराधिप इन्द्रसेनने स्वयं शस्त्र उठाया था, एक क्षण भी नष्ट किये बिना वह बड़ी शीघ्रतासे बलाहक नामके अपने उत्तम हाथीपर चढ़ गया था। 'मैं अब भी क्यों बैठा हुआ हूँ।' यह कहकर उसने प्रयाण कर दिया था तथा उसे चारों ओरसे घेरे हुए छह हजार हाथियोंकी विशाल सेना चल रही थी ।।७।। इन्द्रसेनके शारीरिक वीर्यका पार न था, वह महेन्द्रके समान पराक्रमी था अतएव ज्यों ही अपनी सेनाके साथ उसे अपने ऊपर आक्रमण करते देखा ल्यों ही सुशिक्षित उत्तम हाथियोंकी विपुल सेना लेकर महामंत्री विजयने आगे बढ़ती हुई मथुराकी सेनाको रोक दिया था ॥ ८॥ E [३३० LESEASILLAI १. [तमिन्द्रसेनं ] For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy