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________________ वराङ्ग अष्टावकः सर्गः चरितम् अष्टादशः सर्गः नरेश्वरा ये मधुराधिवस्य भृत्याः प्रकृत्यर्थपराः समेताः । तान्सामवानप्रमुखैरुपायैः स देवसेनः स्ववशे चकार ॥१॥ ततो महत्त्वं त्वविगण्य तस्य जिगीषया नीतिपराक्रमाभ्याम् । तवेन्द्रसेनेन स योद्ध कामः स्वयं प्रतस्थे खलु देवसेनः ॥२॥ संतेजनोपायविधानमार्गः प्रोत्साह्यमानामथ सान्त्वदानैः । विजेतुकामोऽथ वरूथिनीं तां व्यूह विधिज्ञः कृतवानभेद्यम् ॥ ३॥ कृतोपधानाः खलु योधमुख्याः पृष्टा यथाकामममृत्युभीताः । अन्वागता येऽप्यनुरागिणश्च सवाहनास्तान्प्रशशास योद्धम् ॥४॥ अष्टादश सर्ग नीतिसे रणसंचालन मथुराधिप इन्द्रसेनके साथ जो अनेक राजा आये थे वे तथा उसके अधिकांश सेवक स्वभावसे ही अर्थलोलुप थे। उन्हें अर्थसंचयकी अभिलाषा ही ने इन्द्रसेनके अनुगामी बननेके लिए बाध्य किया था। फलतः महाराज देवसेनने उनको साम, दान आदि उपायोंका प्रयोग करके उन सबको मथुराधिपसे फोड़ कर अपने वशमें कर लिया था ॥ १ ॥ विजयकी सदिच्छासे प्रेरित होकर कूटनीति तथा पराक्रमके द्वारा उक्त प्रकारसे शत्रुके महत्त्वको घटाकर महाराज देवसेनने स्वयं लड़नेका निश्चय किया था। वे अहंकारी इन्द्रसेनके साथ साक्षात् युद्ध करके उसे व्यक्तिगत युद्धमें ही हराना चाहते थे ॥२॥ महाराज देवसेन रणनीतिके पंडित थे और शत्रुको सर्वथा परास्त करनेकी दृढ़ प्रतिज्ञा कर चुके थे अतएव उन्होंने अपनी विशाल सेनाकी फिरसे इस प्रकार से ब्यूह रचना की थी, कि उस व्यह रचनाके कारण उसकी पंक्तिको किसी दिशासे तोड़ देना असंभव ही था। जिस ओर सैनिकोंका उत्साह शान्त होता दिखता था उस ओर पुरस्कार आदिकी घोषणाके द्वारा वे । उत्तेजित किये जाते थे। तथा जिधरके सैनिक उत्तेजित होकर व्यहको शिथिल करना चाहते थे उन्हें उचित उपायोंसे शान्त किया जाता था ॥३॥ विश्राम करके लौटे हुए प्रधान योद्धा उस समय खूब पुष्ट थे। मृत्युके भयको तो उन्होंने बिना किसी प्रलोभनके ही नष्ट कर दिया था। इनके अतिरिक्त राजभक्त तथा राष्ट्र और कर्तव्यके समर्थक लोग स्वेच्छासे ही अपने-अपने वाहनों PRESENTERRORIAGIRIDIURRIAGE [३२९) ४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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