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________________ बराङ्ग चरितम् केचित्पुनर्लब्धशिरःप्रहाराः क्षरन्नवासस्थगितात्मवक्त्राः । नैरेक्ष्यमाणा ध्वनिनावगम्या इतोऽमुतो जग्मुरहीनसत्त्वाः ॥ ४९॥ विहाय चाभ्यर्णतयाप्नवाने प्रसह्य चक्रः सहसा नियुद्धम् । केचित्परेषां प्रतिगृह्य शस्त्रं व्याहन्तुकामा मुमुचुस्तदानीम् ॥५०॥ परे पराक्षोणि वितुद्य कुन्तैस्ते निःक्रिया वाक्कटुरूक्षबाणैः। अधिक्षिपन्तो ज्वलिताग्निकल्पा विसर्जयामासुरवज्ञयान्यान् ॥५१॥ प्रत्यागतानुद्यतशस्त्रपाणीन् प्रहर्तु कामानभितः समोक्ष्य । प्रवञ्च्य शिक्षाबलकौशलेन विनम्य पार्शनिबबन्धरन्ये ॥५२॥ सप्तदशः सर्गः करके उनके पेटको फाड़ देते थे, वक्षस्थलोंको चीर डालते थे तथा इन सब उपायोंसे शीघ्र ही उनके प्राणोंको चुनकर फेंक देते थे॥४८॥ किन्ही योद्धाओंके शिर पर ही शत्रु का प्रबल प्रहार पड़ता था, मस्तक फट जाता था और रक्तकी धार बह निकलती थी, जिससे उनका मुख आदि बन्द हो जाता था। फलतः वे अपने शत्रु ओंको नहीं देख पाते थे, तो भी शत्र ओंके शब्दसे उनकी दिशाका पता लगाकर अपने आसपासके शत्रओं पर स्वयं शक्ति क्षीण न होनेके कारण आक्रमण करते ही थे ॥ ४९॥ शत्रु के अत्यन्त निकट आ जानेपर कुछ योद्धा शस्त्रोंका प्रहार छोड़कर एकदम आगे बढ़कर मल्लयुद्ध करने लगते थे । दूसरे भट अपने शत्रु ओंके शस्त्रोंको छीनकर उन्हें मारनेके लिए कटिबद्ध हो जाते थे, किन्तु उसी समय युद्धनीतिका स्मरण आ जानेके कारण छोड़ देते थे । कुछ ऐसे भी शूरवीर थे जो भालोंकी मारसे शत्रु ओंकी आँखें फोड़ देते थे।॥ ५० ॥ मल्लयुद्ध तब वे नेत्रहीन हो जानेके कारण कुछ कर न सकते थे, फलतः उनके अन्तरंग क्रोधकी ज्वाला भभक उठती थी और वे अपशब्दोंरूपी कटु तथा तीक्ष्ण बाणोंसे अपने शत्र ओंपर आक्रमण करते थे, किन्तु आँखें फोड़नेवाले योद्धा तिरस्कारपूर्वक उन्हें पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाते थे ।। ५१ ॥ प्रहार करनेकी इच्छासे कुछ योद्धा शस्त्र सहित हाथोंको ऊपर उठाये हुए ही अपने शत्रु को हर तरफसे घेरते थे। किन्तु उन्हें ऐसा करते देखकर वे अपनी युद्धकलाकी कुशलतासे उनको युक्तिको विफल कर देते थे। इतना ही नहीं उनपर। [३२० ] कुशलतासे पाश फेंककर उन्हें बाँध लेते थे ।। ५२ ॥ १. म स्थनितात्म। २. [ निरीक्ष्यमाणा ] । ३. क प्नुवाने, [ विहायसाभ्यर्णतया प्रयाणे ] । For Private & Personal Use Only राजमायमचन्चचमचमचमाचमन्याम www.jainelibrary.org Jain Education international
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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