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________________ बराङ्ग चरितम् सप्तदशः सर्गः अन्याश्च सन्मान्य यथोपचारं भृत्यान्भृशं निश्चितमर्थवादी । आहय मन्त्रीश्वरदण्डनाथान्संनहातेत्याशु शशास योद्धम् ॥१०॥ नरेश्वरो भास्वरसत्किरीट श्छत्रोच्चलच्चामरकेतुलक्ष्यः । सुकल्पितं मत्तमहागजेन्द्रमारुह्य देवेन्द्र इवाभ्यराजत् ॥ ११ ॥ संना सर्वायुधसंवृतस्थ स्कन्धे गजस्याप्रतिमल्लनाम्नः । कश्चिद्धटस्त्वप्रतिमश्चकाशे यथोदयस्योपरि बालसूर्यः ॥ १२ ॥ मदप्रभिन्नस्रवदागण्डं मातङ्गमम्भोदसमाननादम् । अरिंजयं तं विजयोऽधिरूढः शोभां दधौ चन्द्रमसोऽभ्रमनि ॥ १३ ॥ वीरपजा कश्चिद्भटके साथ-साथ महाराजने अन्य भटोंका भी उनकी योग्यता आदिके अनुसार स्वागत सत्कार किया था। इस सबसे निवृत्त होकर वे अपने अन्तिम निर्णयकी घोषणा करना चाहते थे फलतः मंत्रियों, कोषाध्यक्षों तथा दण्डनायकोंको बुलाकर उन्होंने आज्ञा दी थी कि 'आप लोग युद्ध करनेके लिए शीघ्रातिशीघ्र सन्नद्ध हो जा' ।। १०॥ समरयात्रा समरयात्राके समय मदोन्मत्त उन्नत तथा पुष्ट करिवरपर विराजमान महाराज देवसेन ऐसे मालूम देते थे मानो ऐरावतपर इन्द्र बैठे हैं । अत्यन्त रमणीय मुकुट उनके शिरपर जगमगा रहा था, चमर ढुर रहे थे, हौदेपर ध्वजा फहरा रही थी तथा हाथी भी कौशलपूर्वक सजाया गया था ।। ११ ॥ अप्रतिमल्ल नामके सुसज्जित हाथीपर युद्धके सब अस्त्र पहिलेसे ही यथास्थान रख दिये गये थे। इसी अनुपम हाथीके ऊपर कश्चिद्भट आरूढ़ हुआ था। कश्चिद्भटका अपना तेज ऐसा था कि दोनों सेनाओंमें कोई उसकी समता न कर सकता था। अतएव हाथीपर विराजमान होकर वह ऐसा प्रतीत होता था मानों प्रातःकालका सूर्य उदयाचलपर प्रकट हो रहा है ॥ १२ ॥ जिस हाथी पर मंत्रिवर विजयने प्रस्थान किया था उसका नाम अरिञ्जय था, यौवनके मदके कारण उसका कपाल फट पड़ा था, मदजलकी धारसे उसके गण्डस्थल गीले थे तथा उसकी चिंघाड़ वर्षाकालोन मेघकी गर्जनाके समान गम्भीर थी । अतएव उसपर चढ़े हुए विजयमंत्रीकी शोभा वही थी जो कि बादलके ऊपरसे उदित हुए चन्द्रमाकी होती है ॥ १३ ॥ १.क तिरोटः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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