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________________ सप्तदशः बरान चरितम् सर्ग: e westawesomemae-we-m चमूपमन्त्रीश्वरराजपुचाः गृहीतशस्त्रा युधि दुःप्रधर्षाः । आरुह्य मत्तद्विरदेन्द्रवृन्दं प्रतस्थिरे योद्धम भीप्सवस्ते ॥ १४ ॥ ते कुजराः काञ्चनरज्जुधाराः श्वेतोल्लसच्चामरवीज्यमानाः । मयूरपिन्छध्वजतुजकूटा रेजुविसीगिरयो यथैव ॥ १५॥ रथाश्च सद्रत्नसुवर्णनद्धा भास्वध्वजच्छत्रचलस्पताकाः । महारथैरप्रतिमैनिविष्टाः कल्पान्तसूर्या इव ते विरेजुः ॥ १६ ॥ युद्धाध्वभारक्षमसत्त्वयुक्ता विचित्रवर्णाः कुलशीलशुद्धाः ।। तुरनमा वायुसमानवेगाः समोयुरुर्वीपतिशासनेन ॥ १७॥ SHRESTHesiresemSHeare इनके अतिरिक्त सब ही सहायक राजा, राजपूत्र तथा समस्त सेनापति अपने अपने शस्त्रोंको लेकर चुने हुए बढ़ियाबढ़िया सुशिक्षित हाथियोंपर आरूढ़ होकर समरस्थलीकी ओर चल दिये थे। यह सबके सब लड़नेके लिए व्याकुल थे क्योंकि युद्ध में इनकी प्रतिद्वन्द्विता करना अति कठिन था ।। १४ ।। हस्तिरथ सैन्य योद्धाओंके वाहन होकर युद्धस्थलीमें जानेवाले यह हाथी भी अपने ऊपर पड़ी सोनेकी रस्सियोंसे चमचमा रहे थे, प्रकाशमान श्वेत चमर उनपर दुर रहे थे उनके ऊपर लहलहाती उन्नत ध्वजाओंपर मोरकी पूँछके शिखर खड़े किये गये थे। अतएव वे सबके सब हाथी चलते-फिरते पर्वतोंको शोभाको आँखोंके सामने प्रकट कर देते थे ॥ १५ ॥ ललितेश्वरकी सेनाके सब ही रथोंमें उत्तम रत्न तथा सोनेका जड़ाव था, चमकती हुई छोटी-छोटी ध्वजाएँ चारों ओर लगी थीं उनपर लगे छत्रोंको द्युति भी अनुपम थी तथा शिखर पर लहलहातो ध्वजाओंका प्रकाश तो अनुपम ही था । इस बाह्य शोभाके अतिरिक्त उनपर एक एक महारथी (जो अकेले हो दश हजार भटोंसे युद्ध करता है) योद्धा विराजमान था। इन सब कारणोंसे वे रथ प्रलयकालमें उदित हुए अनेक सूर्योके विमानोंकी समता करते थे । अश्वारोही-पदाति ___ युद्धयात्राके लिए महाराजकी अन्तिम आज्ञा होते ही वायुके समान द्रुत गतिसे दौड़नेवाले श्रेष्ठ घोडोंकी सेना बाहर निकल पड़ी थी। इस सेनाके प्रत्येक घोड़ेमें युद्धमार्गके परिश्रम तथा भारको सह सकने योग्य शक्ति तथा शिक्षा थी, सब ही घोड़ोंकी:जाति ( नस्ल ) तथा वंश उत्तम थे तथा उनके विचित्र रंग तो देखते ही बनते थे ।। १७ ॥ १.क योद्धमभीप्सुवंस्ते । [३१२] Jain Education interational For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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