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________________ षोडशः चरितम् अभ्यर्ण एषोऽपि च मेऽप्यकालः स पाठिणरप्यस्य तु पार्वतीयः। अतो न सन्ध्याश्रयतां प्रयामः स्थाप्याम' एवेत्यवदत्स मन्त्री ॥ ६४॥ साधूक्तमेभिर्नुपमन्त्रिमुख्यैः सन्ध्याश्रयस्थानगुणैः प्रसिद्धिः। एषां प्रयोगस्य गतस्तु कालो ह्यकालतस्तेऽपि भवन्त्यनाः ॥ ६५ ॥ यह तसंप्रेषणकाल एव सामप्रदानाद्युचितानुपायान् । अकूर्म चेद्ध मिप सा सुनीतिः कालात्ययः संप्रति दोष ऐषः ॥६६॥ एभिस्त्रिभिर्मत्रिवरैर्महोश कार्य यदुक्तं तदपोहनीयम् । न मे प्रियं युक्तिविजितत्वादित्याचचक्षे विजयश्चतर्थः ॥ ६७॥ स इसकी सेना तथा राष्ट्र के पीछे वह पहाड़ी राज्य पड़ता है (जो आसानोसे इसके विरुद्ध उभारा जा सकता है)। । इसके सिवा वर्षा ऋतु भी अति निकट आ पहुंची है फलतः इसे लौटकर आत्मरक्षा करना दुसाध्य हो जावेगा । अतएव मेरा दृढ़ । मत है कि सन्धि मार्गका अनुसरण करना सर्वथा नोतिके प्रतिकूल है। अपितु कुछ समय तक घेरमें ही पड़े रहकर शत्रुको A दुर्बल करेंगे। ६४ ॥ मंत्री-विजयकी वाक्पटुता ___हे महाराज ! आपके इन तीनों प्रधान मंत्रियोंने जो क्रमशः बताया है कि संधि, आश्रय और स्थानको ग्रहण करनेसे में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सकती है वह सर्वथा नीति शास्त्रके अनुकूल है। उसमें यदि कोई कमी है तो यही कि उक्त तीनों मार्गोंके प्रयोगका समय ही वीत चुका है। अब यदि असमयमें इनका प्रयोग किया जायेगा तो वह शास्त्र-सम्मत होते हुए भी अनर्थ ही करेगा क्योंकि उनका अब अवसर नहीं है ।। ६५ ।। जिस समय आप मथुराधिपके दूतको वापस कर रहे थे यदि उसी समय साम, दाम आदि उपायोंको व्यवहार किया होता तो वह अत्यन्त उचित होता । और वह उत्तम श्रेणीको नीतिमत्ता भी होती, किन्तु इस समय वह सुअवसर हाथसे निकल गया है फलतः नयो विकट परिस्थितियाँ पैदा हो गयी हैं, यही कारण है उक्त प्रयोग इस समय सदोष है ।। ६६ ।। हे महोश ! मेरे सुयोग्य सहयोगी इन तीनों कुशल मंत्रियोंने जो कार्य इस समय करनेको कहे हैं। वे इस समय सर्वथा छोड़ने योग्य हैं। वे उपाय मुझे जरा भी नहीं जंचते हैं क्योंकि उनका समर्थन किसी भी युक्तिसे होता नहीं है, इस प्रकार चौथे मंत्री विजयने अपनी सम्मतिको प्रकट किया था ।। ६७ ॥ १. [स्थास्याम]। २. क अकर्म । [२९८] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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