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________________ षोडशः चरितम् उत्साहमन्त्रप्रभुशक्तियोगाज्यायानयोध्याधिपतिः क्षितीशाम । श्रीवीरसेनोऽस्ति तमाश्रयाम इत्याचचक्षे विनयादिद्वतीयः ॥६॥ किं तेन राजा बलवत्तमेन स्वकार्यसंसिद्धिपरायणेन । इदं पुनर्यक्तिमदर्थमन्यद्बवीमि वाक्यं यदि रोचते ते ॥६१॥ सन्तीह पुर्या सुजना समद्धा अगाधतोयाश्च तडागवाप्यः।। शूरा मनुष्याश्च परैरहार्यास्त्वं चापि शक्तित्रयमभ्युपेतः ॥ ६२॥ मुख्येषु भेदं प्रतिदर्शयन्त'स्तद्धीवचां सारधनं नियोज्य ।। पाष्र्णी तथोत्थाप्य हि तस्य देशे विगृह्यते नाशनमेव युक्तम् ॥ ६३ ॥ सर्गः यदि आपको अनुमति हो तो हम अयोध्याके महाराज श्री वीरसेनकी शरणमें जावें, क्योंकि वर्तमानके सब राजाओंमें जहाँतक मंत्रशक्ति, प्रभुशक्ति तथा उत्साहशक्ति इन तीनोंका सम्बन्ध है, वे सबसे बढ़कर हैं।' दूसरे मंत्रीने बड़ी विनम्रताके साथ अपनी यही सम्मति दो थी ।। ६० ।। प्रतिरोध तथा भेद तीसरे मंत्रीने कहा था 'हे महाराज उत्तरकोशलके अधिपति श्रीवीरसेन; इसमें सन्देहका लेश भी नहीं है कि सबसे अधिक बलशाली हैं। किन्तु वे सर्वदा अपने स्वार्थ की ही सिद्धिमें लगे रहते हैं अतएव उनसे हमारा क्या लाभ हो सकता है ? । यदि आपकी रुचि हो तो मैं एक दूसरा हो प्रस्ताव उपस्थित करता हूँ जो कि अधिक युक्तिसंगत तथा कल्याणकारी है ॥ ६१ ॥ आपकी इस राजधानीमें एक दो नहीं अनेक सज्जन परम सम्पत्तिशाली हैं ( जिनका धनकोश को अक्षय कर देगा) । कितने ही तालाब, बाबड़ियाँ आदि इतने गहरे हैं कि उनकी थाह पाना ही असंभव है ( अतएव जनताको जल आदिका कष्ट नहीं हो सकता ) तथा असंख्य ऐसे वीर पड़े हुए हैं जिन्हें शत्रु प्राण खपाकर भी नहीं पछाड़ सकता है। सबसे ऊपर आप स्वयं हैं। ही क्योंकि आप तीनों शक्तियों से सम्पन्न हैं ।। ६२ ॥ शत्रुके प्रधान सहायकों, सामन्तों तथा सेन नायकोंमें आपसी मतभेदका अपवाद करनेवाले तथा उसकी वास्तविकता# से पूर्ण परिचित चरोंको ( अथवा खब धन देकर उसके ही सलाहकारोंको) अपना कर्तव्य निभानेके लिए नियुक्त कर दिया जाय । तथा उसके अपने राज्यमें किसी समर्थ राजाके द्वारा पीछेसे आक्रमण करवा कर उसे समूल नष्ट कर देना ही उचित [२९७] १. [°स्तद्धीमतां] । २. म सारवघं । २८ Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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