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बराङ्ग
चरितम्
एकोनत्रिंशसर्ग
सयाना संसार
तपकी दुष्करता भोगोंकी अजेयता सिंहवृत्ति-वरांग जो लो देह तोरी
स्वजन शत्रु
संसारमें फँसाने वाले ही शत्रु हैं
राज्य रहस्य ममताका चित्रण महामोह जागे
नियोगी सुतको
षडंग परस्परावरोधने त्रिवर्ग
पाप मार्गपर पग न पड़े
सफलता की कुञ्जी है राज्याभिषेक-सम्मान 'छोड़ बसे वन'
पारिभाषिक शब्दकोश
५८२ - ६०५ यथार्थं धर्मपत्नी खलजनोंकी बातें
नास्तिक मत
नीति निपुणों द्वारा स्तुति गुरुदर्शन
चारित्र मेव
धर्मके साथी
पतिपरायणता पत्नियाँ
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तपसूर
त्रिश सगं
वियोगी जन
गुण स्थान
ज्ञायक - त्रिलोक विचार
शल्यत्रय उन्मूलन
मन मंतगज
ऋतुतप
उपसर्ग परीषह जय
तीर्थाटन
५९५ रागद्वेष विजयी
५९६ नीरस भोजनरत ५९७ रिद्धिसिद्धि
५९८
वर्द्धमान तप
६००
एकत्रिंशसर्ग
रानियाँ पतिसे पीछे नहीं
वरांग ऋषिका तप
आशा विजय
नाना भाँति तप
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६११ चतुविध आराधना
गुण प्राप्ति
बारह भावना
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ऋतुतप
घोर तप - ऐहिकका फल
धर्म विहार
समाधिमरण
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शरीरान्त
इतरसाधु सद्गति
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