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बराङ्ग चरितम्
सर्गः
समेत्य सर्वे स्वबलैरुदारैरनेकशस्त्रास्त्रविभूतिमद्भिः। उत्थापितच्छत्रसुकेतुचिह्ना निश्चक्रमुभूपतयः प्रयोद्धम् ॥ ३४ ॥ प्रदानमानकरसाप्तवीर्याश्चिकीर्षवः स्वामिहितानि भृत्याः । इहात्मशौयं प्रतिदर्शयामो रणे नृपाणामिति केचिदाहुः ॥ ३५॥ अस्वामिकार्याणि पुनर्बहनि दिनान्यतीतानि निरर्थकानि । अद्यात्मशक्ति नपतेः समक्ष प्रकाशयिष्याम इति न्यवोचन् ॥ ३६॥ पश्यामि तावत्समराजिरेऽस्मिन् नणां पुनः सारमसारतां च । स्याद्ध मकेतौ कनकस्य शुद्धिर्व्यक्ति प्रयातीति निराहुरन्ये ॥ ३७ ॥ नृपेन्द्रसेनो बृहदुग्रसेनः कृतात्मशक्तिबहुकोशदेशः।
अवार्यवीर्यो दृढबद्धवैरः सुनोतिनीतार्थविशुद्धबुद्धिः ॥ ३८ ॥ अपनी अपनी विशाल सेनाके साथ सम्मिलित हुए थे इनमेंसे प्रत्येक की सेना नाना प्रकारके विशेष शस्त्रास्त्रोंसे सुसज्जित थी। सब अपने अपने चिन्हयुक्त देशकी ध्वजाएँ फहराये चले जा रहे थे । प्रत्येक देशके राजाका छत्र भी अलग-अलग रंगरूपका था। इनमें एक भी ऐसा राजा न था जो घोर युद्ध करनेके लिए लालायित न रहा हो ।। ३५ ।।
युद्ध मद . इन सेनाओंमें जो वीर बढ़े चले जा रहे थे उनके हृदय भेटों, स्वागत, सन्मानों, पदवृद्धि आदिके द्वारा इतने बढ़ गये। थे कि बे सब कुछ की बाजी लगाकर अपने प्रभुका हित करना चाहते थे। राजाओंमेंसे कोई-कोई राजा कहते कि इस युद्ध में हम लोग अपनी अपनी शर-वीरताका वास्तविक प्रदर्शन करेंगे ।। ३५ ।।
प्रभुका कोई भी काम न करते हुए एक नहीं अनेक अगणित दिन व्यर्थ ही बीत गये हैं। बहुत समय बाद यह अवसर मिला है। महाराज इन्द्रसेनके सामने ही अपने सच्चे बल, धैर्य और रणकौशलका प्रदर्शन करूँगा' इस तरह उत्साह भरे वचन कहते थे ।। ३६ ।।
इस महायुद्ध की रणस्थली के प्रांगणमें मैं देखूगा कि मनुष्य में कितनी शक्ति हो सकती है अथवा मनुष्य शरीर और और जीवन कितने सारहीन हैं । इसी बीच में कोई दूसरे बोल पड़ते थे-अरे भाई आगमें (धुंआ ही जिसकी ध्वजा है ) तपाये जाने पर ही सोना शुद्ध होता है तथा उसके चोखेपनको परखनेका भी यही उपाय है ।। ३७ ।।
आत्माभिमान महाराज इन्द्रसेनकी सेना विशाल होनेके साथ-साथ अति साहसी तथा उग्र भी है। इनका आत्मबल भी इतना पुष्ट । है कि दारुण विप्लवके समय भी थोड़ा सी कमी नहीं आती हैं । मथुरा राज्यके विशाल विस्तारको कौन नहीं जानता है तथा ।
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