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________________ चरितम् संस्थाप्यमानोऽपि मयेन्द्रसेनः स्यातुं न चेच्छेत्स्वकुलोचितेन । प्राग्यद्गृहीतं च धनं परेषां तद्वा' अहिष्यामि दुरात्मनोऽहम् ॥ १८॥ अथ त्वरा वास्ति हि पौरुषं वा आगम्यतां सर्वबलेन सद्यः । य आवयोर्जेष्यति युद्धशौण्डो भवन्तु हस्त्यश्वपुराणि तस्मै ॥ १९॥ इत्येवमाघोष्य सभासमक्षं संतज्यं रोषादपभीस्तदा म् । विरोधबुद्धया न ददौ स्वलेखं कृत्वार्धमुण्डं विससर्ज दूतम् ॥२०॥ ततो विसृष्टो वसुधेश्वरेण प्रस्तात्मचित्तस्तु कृतार्धमुण्डः।। परिस्पृशन्स्वं स शिरः करेण जगाम तुष्णी ललिताह वपुर्याम् ॥ २१ ॥ षोडशः सर्गः MITRAATETAPAHESAIRATRAPAMPAIRPARIHARATPAD मेरे द्वारा ही यह इन्द्रसेन मथुराके राज्य सिंहासन पर बैठाया गया है । अब यदि वह शक्तिके दर्पमें अपने कुलमें चली आयी परम्पराके अनुकूल आचरण नहीं करता है, तो इसके पहिले उसने बलपूर्वक जितना भी दूसरोंका धन छीन लिया है, उस दुष्ट, कदाचारीकी वह सबकी सब सम्पत्ति मैं दूसरोंके द्वारा लुटवा दूंगा ॥ १८॥ अथवा यदि उसे इतनी जल्दी है कि मेरे आनेकी प्रतीक्षा नहीं कर सकता है, अथवा उसमें यदि कुछ भी पौरुष है तो वह समाचार पाते ही अपनी पूरी सेनाके साथ मुझसे युद्ध करनेके लिए चला आवे। हम दोनोंमेंसे जो अधिक युद्धकुशल होगा तथा जो विजयी होगा, हारे हुएके देश, नगर, हाथी, घोड़ा आदि भी सर्वथा उसीके होंगे ॥ १९ ॥ ललितपुरके राजा उस समय इतने कुपित थे कि भय आदि दूसरे भाव उनके पास भी न फटकते थे, अतएव उन्हें भरी सभाके सामने ही दूतको बुरी तरहसे डाँटकर उक्त घोषणा की थी। उन्होंने मथुराधिपका विरोध करनेका निर्णय कर लिया था इसी कारण उसके पत्रका कोई उतर भो न दिया था तथा दूतका आधा सिर मुड़ा कर उसे वापिस कर दिया था॥२०॥ दूतका अपमान ___ आधा शिर मुड़ जानेके कारणो मथुराधिपके दूतके चित्तमें बड़ा डर बैठ गया था । अतएव महाराज देवसेनने ज्योंही उसे राजसभा छोड़नेकी आज्ञा दी त्योंही अपने अधघुटे सिर पर हाथ फेरता हुआ वहाँसे चल दिया था, तथा अपमानका इतना गहरा धक्का उसे लगा था कि वह चुपचाप बिना कुछ कहे ही ललितपुरसे चल दिया था ॥ २१ ।। मायान्यनामाचELIGITAL [२०] १. क तद्वामयिष्ये खलु मान्वरिष्ठाः। २. क कृतार्थदण्डं । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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