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________________ चरितम् ४६२ ४. ४७० है जिनालयकी सज्जा जिनालयके विभाग जिनालयके उद्यान असाधारण मन्दिर जिनमहका प्रारम्भ त्रयोविंश सर्ग मूर्तिप्रतिष्ठा किमिच्छिक दान प्रतिष्ठा संरम्भ बहुमुखी भक्ति प्रातःकालीन पूजा । जिनालयमें वास द्रव्योंके फल दिक्पाल-पूजा अभिषेक सज्जा सामग्रीको मन्दिर यात्रा चमरधारिणी कलश यात्रा जलयात्राके विविधरूप जलयात्रा-सरिता रूपक पुजारी राजा-रानी मुहूर्त-प्रतीक्षा अभिषेक प्रारम्भ जिनबिम्ब शृंगार अष्टमंगल-द्रव्य अर्पण आशीर्वाद जिनालय पूजाका फल । अभिषेकका फल ४३५ द्रव्यपूजाका फल ४५८ पञ्चविंश सर्ग ४८७-५११ ४३६ मंगलद्रव्य अर्पणका फल वर्णव्यवस्था ४८७ ४३७ गृहस्थाचार्यका आशिष विविधवंश ४८८ ४३८ किमिच्छक-दानी याज्ञिकी हिंसा ४९० ४३९ धर्ममेला ४६१ प्रासुक बलि ४९३ ४४०-४६५ धर्मवीर हिंसाकी घातकता ४९२ धर्मकरत संसार सुख दयाधर्मका मूल ४९३ चतुर्विंश सर्ग ४६६-४८६ ब्राह्मणत्व विवेचन ४४१ प्रकृति गुणोपेत ४६६ यज्ञादिकी निस्सारता ४४२ सुखसागरमें मग्न राजा ४६७ ब्राह्मणत्व जातिकी निस्सारता ४९७ ४४३ पुण्यका परिपाक ४६८ कर्मणा वर्ण ४९७ ४४३ त्रिवर्ग सेवया ४६९ गंगाकी पूज्यता ४४४ राजाकी स्तुति ४७० तीर्थों की यात्रा ४४५ धर्मप्रश्न तीर्थोंका इतिहास ४४५ दैववाद विचार गायका देवत्व ४४७ कालवाद समीक्षा पितृ-तर्पण ४४८ ग्रहवाद ब्राह्मण दानका रहस्य ४४९ जगदीश्वर वाद प्रमाण मीमांसा ४५० नियतिवाद कारणता विचार ४५२ सांख्यवाद निरसन ईश्वरत्व विवेचन ४५३ शन्यवाद सुगत मीमांसा ४५३ (क्षणिक तथा नित्यवाद ) बौद्ध ४७८ ईश्वर वाक्य ५०८ ४५४ आत्मवादका विचार ४७९ सांचोदेव ४५५ उत्थान मार्ग उपसंहार ४५५ उपायज ४८१ ४५६ संसारबन्ध ४८२ षड्विंश सर्ग ५१२-५३० ४५७ पुण्यका फल ४८३ जीव तत्त्व विवेचन ४५७ धर्मज्ञानको प्रशंसा ४८५ अभव्य ज्यामराम्यानमारमानामन्यमानामामा ४७१ ० ० ० ० ० ० ० OMGFXW ० ० ० ० ० ० ४७३ ४७५ ४७६ ४७७ ४७७ ४८० [२८] الهی اس Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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