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________________ नाम वराङ्ग चरितम् ४४०mgur9 २८९ ३६३ ता १ संहारका आरम्भ ३४४ अवज्ञात धर्मसेन ३८२ आनर्तपुर पुनःस्थापन ४०६ नायकोंका सामना तथा वाग्युद्ध ३४५ सुमंत्री मत ३८३ नगर वर्णन इन्द्रसेन आहत ३५१ दूत-देशनिष्ठ ३८४ राजभवन वरांगका रणरंग ३५३ कश्चिद्भट निर्वेद ३८५ देवालय विजयी-नगरप्रवेश ३५५ पिता प्रेम ३८५ नागरिक समृद्धि । कुतुहलप्रिय ३५६ कृतज्ञ वरांग ३८६ सम्पन्न-राज पुत्र-प्रेयता ३५६ मनोरमासे विवाहादि ३८७ उपकारसे अनूर्ण एकोनविंश सर्ग ३५९-३७७ कृतज्ञता ही साधुता ३८८ वत्सल कुलादि जिज्ञासा ३५९ उपकारी पितासे अनुज्ञा लेना शत्रुमर्दन वरांगकी शालीनता युद्धयात्रा ३९० साम-नीति नगर सज्जा ३६२ सेनाका सौन्दर्य क्षमा दान विवाह मण्डप सागरवृद्धि द्वारा देवसेन सफल-शासक नवदम्पति स्वागत ३६५ आगमन समाचार ३९२ द्वाविंश सर्ग ४२०-४३९ गाढ़ानुराग ३६७ पुत्रप्राप्तिसे प्रमुदित राजा सुराज्यका वर्णन मनोरमाका मोह विरह-व्यथा आत्मीय बन्धुमिलन दुखियाका सगा प्रेमछिपाना ३६९ शत्रु पलायन वरांगराजका ऋतुविहार सखीद्वारा आश्वासन ३७१ राज्याभिषेक सुखमग्न राजा वरांगस्थिरता ३७२ राजभवन-प्रवेश ३९८ पुण्य प्रशंसा सखीकी युक्तियां ३७३ माता-भक्त ३९९ सुख में भी धर्म न भूलने विवेकिनी नारीका निर्वेद, ३७६ एकविंश सर्ग ४००-४१९ रानी-अनुपमा विश सर्ग ३७८-३९९ कर्म वैचित्र्य ४०० सागार-धर्म सुखमग्न वरांग ३७८ सम्बन्धी विदा ४०१ अष्टांग सम्यकदर्शन | अयोग्य सुषेणका राज्याभिषेक ३७९ न्याय निपुण राजा ४०२ जिनपूजाकी श्रेष्ठता सुषेणको अयोग्यता तथा शत्रुका हृदय परिवर्तन ४०२ नन्दीश्वर विधान आक्रमण सुषेणका पराभव ३८० क्षमा याचना ४०३ मूर्तिपूजा शत्रुको सुअवसर ३८१ पुरुषार्थ निश्चय ४०४ जिनमन्दिर धर्मसेनका वरांगको याद करके दिग्विजय अनुमति ४०५ जिनालय निर्माण । दुखी होना ३८१ सहयात्री चयन ४०६ जिनालयका वर्णन ३९३ ३९५ 14 ३९७ d Mmmmmm 20 or m" [२०] 4 Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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