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वराङ्ग चरितम्
तथैव मृत्युमातङ्गस्तिर्यग्नरसुरासुरान् । प्राप्तकालान्प्रमृद्नाति दिवानिशमवारितः ॥९९॥ तिर्यग्योनिषु सर्वासु मर्त्यदैत्यामरेषु च । नारकेषु च दुर्वायौं विहरत्यन्तकः सदा ॥१०॥ विषैश्च विषमाहारैः पानीयैरनलानिलः। शस्त्रोल्कावह्निसंपातैाधिरूपरुपैति सः॥१०१॥ जरया मृत्युना जात्या क्लेशाननुभवंश्चिरम् । आत्मा संसारवासेऽस्मिन्बम्भ्रमीति पुनः पुनः ॥१०२॥ यत्र जीवस्य जातिः स्यात्तत्रावश्यं जरा भवेत् । जरापरोतगात्रस्य ध्रुवं मृत्युभविष्यति ॥१०३॥ जातेदु:खं परं नास्ति जरसः कष्टं न विद्यते। भयं च मृत्युतो नास्ति तत्र यत्सेव्यते ध्रुवम् ॥१०४॥ ह्योविद्धि' निर्गतं जन्म स्वोदच्च तदनागतम् । अद्यवद्वर्तमानं स्यादित्युक्तं कर्मदशिभिः ॥१०५॥
पञ्चदशः सर्गः
उसी प्रकार मृत्यु ( आयुकर्मको समाप्ति ) रूपी पागल हाथी नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य तथा देवगतिरूपी कदली वनोंमें घूमता है। तथा जिन जोवोंके आयु कर्मको इतिश्री आ पहुँचतो है उन्हें दिन रात निर्दयतापूर्वक कुचलता जाता है, उसे कोई | रोक नहीं सकता है ॥ ९९ ॥
अंत करनेवाला ( यम = आयुकर्म ) तिर्यञ्च, मनुष्य, अमर तथा नारकों सब ही योनियोंमें अबाधरूपसे घूमता है संसारकी कोई शक्ति उसको रोक नहीं सकती है ।। १०० ॥
वह विषके प्रयोग, अनियत असंगत भोजन-पान, अग्निकाण्ड, आँधी अथवा विषाक्त वायुप्रवाह, युद्ध प्रसंग, वज्रपात, साधारण आग तथा विविध प्रकारके अनेक रोगोंके रूपमें संसारके प्राणियोंपर झपटता है ।। १०१ ।।
परवशता, पराधीनता तथा उत्साहहीनतामय बुढ़ापा, किये करायेको स्वाहा करनेवालो मृत्यु, गर्भावासके महा दुखोंसे A पूर्ण जन्मके प्रसंगों द्वारा यह आत्मा इस संसार चक्रमें पुनः पुनः बिना रुके ही चक्कर काटता है ।। १०२ ॥
त्रिदुःख जहाँ पर किसी जीवका जन्म होता है वहाँपर निरपवादरूपसे वृद्धावस्थाका आविर्भाव होता ही है, तथा जब किसी प्राणीके शरीरको बुढ़ौतीने जरजर कर हो दिया है तो उसको यदि कोई बात अटल है तो वह मृत्यु हो है ।। १०३ ।।
संसारमें अनन्त दुःख है पर कोई भी दुःख प्रसवके दुःखोंकी समानता नहीं कर सकता है, कष्ट भी संसारमें एकसे एक बढ़कर हैं पर बुढ़ौतीका कष्ट सबसे बढ़कर है, इसो प्रकार त्रिलाकमें कोई ऐसा भय नहीं है जिसको नुलना मृत्युभयसे की जा सके । तथा सबसे बड़ी परवशता तो यह है कि इन तोनों घाट सबको ही उतरना पड़ता है ।। १०४ ।।
जो कर्मोंके शास्त्रके विशेषज्ञ हैं उनके मतसे जन्मको बोते हुए कलके समान समझना चाहिये, जो अब तक सामने नहीं
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१. [ ह्योवद्धि]। Jain Education interational
२. क स्त्वोवञ्च, [ श्वोवच्च ] ।
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