________________
१९७
or रस
बराज चरितम्
0
प
.
0 or or
m3
विमाताको इर्ष्या तथा पुत्रकी
यक्षिणीका प्रेम प्रस्ताव २२२ पुलिन्द युवराजका वध भर्त्सना
१९५ लैंगिक आचारका आधार पत्नी २२३ पुलिन्दराज महाकालसे युद्ध कुचक्र
यक्षिणी पर प्रभाव
२२४ वरांगका युद्ध नैपुण्य मंत्रीका उपदेश भविष्यको चिन्ता
पूर्ण विजय तथा विजयोल्लास , अकार्यमें योगदान
पुलिन्दों-आक्रमण
२२५ वरांगका स्वागत षड्यन्त्रारम्भ
धूर्त मंत्रीपर क्रोध
२२७ स्वास्थ्य लाभ तथा कश्चिद्भट षड्यन्त्र कार्या० २०३ नरबलिकी सज्जा
२२८ नामसे ख्याति दोनों घोड़ोंकी दो प्रकारकी शिक्षा, विषाऽपहारमणि
२२९ सार्थका ललितपुर आना क्राडाक्षेत्रमें अश्व प्रदर्शन कारावाससे मुक्ति
पुनर्मिलन वरांगका दसरे घोडेपर चढ़ना , अग्रिम मार्गशोध
वीरपूजा घोड़ेका बेकाबू होना
२०४ भावी कर्तव्य द्विविधा
नूतन विवाह प्रस्ताव तथा वरांगकी कष्टमयता तथा कूएमें
न बन्धुमध्ये
२३१ -वरांगका संकोच गिरना
२०५ वरं वनम्
२३२ राजा श्रेष्ठि अभिषेक लता पकड़ कर बचना तथा शंका प्रश्न
गुणग्राही ललितपुर बाहर आना अशरण वरांग
पुनः बन्दी होकर सार्थपतिके सामने २३३ पुण्यात्माका प्रेम पुरुषार्थ-उदय
गंभीर राजकुमार
२३४ वरांगकी दिनचर्या आक्रमण सार्थपतिकी सदाशयता तथा
पञ्चदश सर्ग २५८-२८२ आपत्तिमें आपत्ति २०८ -स्वागत
उत्तमपुरकी दशा गजराजके प्रति कृतज्ञता २०९ कुलीनताभक्त सागरवृद्धि
अपहरण-कारण विमर्ष । रोटीके बिना व्याकुल रंक राजा २११ चतुर्दश सर्ग २३६-२५७ गुप्तचरों द्वारा शोध विचित्रा कर्म पद्धति २१४ बधैरपि
२३६ पिताकी दुश्चिन्ता तथा शोक त्रयोदश सर्ग २१५-२३५ रंगमें भंग
२३७ अन्तपुर समाचार कर्ममति २१५ रण-आदेश
राजमाताका विलाप आर्तध्यान तथा शुभ चिन्तन
सेठका स्नेह
२३८ भारतीय-पत्नियाँ शोक सन्तप्तजिनभक्ति ही शरण २१७ संघर्ष समारंभ
" -राजवधुएँ
२६४ शुभभावका फल २१९ रणकी दारुणता
२३९ ससुरसे दुःख रोना यक्षिणी द्वारा जिज्ञासा २२१ सार्थसेनाकी पराजय-पलायन २४१ पुत्रवियोग से विह्वल माता वरांगका दृढ़ स्वदार-संतोष-व्रत २२२ वरांगका पराक्रम
२४२ प्रवाहैरेवाधार्यते
२६८ ॥
m
२१६ सठकागह
[२५]
Jain Education international
For Privale & Personal Use Only
www.jainelibrary.org