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________________ चतुर्दशः सर्ग: विघाटिता रत्तसुवर्णपेटा भिन्नानि भास्वन्मणिभाजनानि । दुकूलकौशेयकचामराणां भारान्विशीर्णानथ वीक्षमाणः॥४७॥ तत्रावनीन्द्रं परिमूच्छिताशं व्रणस्रवच्छोणितलिप्तगात्रम् । ईषच्छवसन्तं हि निमीलिताक्षं रणाजिरे सार्थपतिस्त्वपश्यत् ॥ ४८ ॥ शरासिपातव्रणमण्डिताङ्गः श्रमाभिभूतो विनिपत्य भूमौ । रराज राजा कमनीयरूपो लाक्षारसक्लिन्न इवेन्द्रकेतुः ॥४९॥ हा' वत्स कि जातवदार्यवर्य किं मौनमास्थाय सुखोषितोऽसि । उत्तिष्ठ भन्नाशु कुरु प्रसादं प्रदेहि नाथ प्रतिवाक्यमेहि ॥५०॥ बालोऽसहायो बलवजितश्च सकर्पटोऽजनिथ शत्रुसैन्यम् । युवा समर्थः स्वपदे स्थितश्चेत्स शासनः शान्तवधाः प्रति स्यात् ॥५१॥ APERSPELIEReatsautanaLASEASELERSatsanc इसके तुरन्त बाद ही वे सब तोड़े गये रत्नों तथा सोनेके सन्दूकों, टुकड़े टुकड़े करके फेंक दिये गये जगमगाते हुए मणियों के भूषणों तथा फेंककर इधर उधर अस्त-व्यस्तरूपमें पड़े हुए उत्तम वस्त्र , कोशाके वस्त्र , चमर आदि की गाठोंको देखते हुए सार्थपतिने देखा था कि समरांगणमें पृथ्वीपालक युवक राजा आँखें मीचे पड़ा है ।। ४७ ॥ निकट जाने पर पता लगा कि वह मच्छसेि अचेत है, यद्यपि थोड़ो थोड़ी सांस रह रहकर चल रही है, उसके सम्पूर्ण शरीरमें असंख्य घाव लगे थे तथा उनसे बहते हुए रक्तसे उसका शरोर लथपथ हो गया था।। ४८॥ वाणों और खड्गोंके प्रहार से लगे घावों द्वारा शरीरको भूषित करके, अति परिश्रमसे अचेत होकर राजपुत्र पृथ्वी पर गिर गया था। किन्तु स्वभावसे लावण्यपूर्ण उसका शरीर उस अवस्था में भी बड़ा आकर्षक था । ऐसा प्रतीत होता था मानो इन्द्रध्वज लाक्षाके रसमें भींगकर गिर गया है ।। ४९ ॥ आहत वराङ्ग 'हाय वल्स ! तुम्हें क्या हो गया है ! हे श्रेष्ठ ! बोलो, क्यों मौनधारण करके आनन्द पूर्वक पृथ्वीपर सो गये हो ? हे भद्र ! उठो, शीघ्र ही हम सब पर कृपा करो, हे नाथ ! कृपा करके प्रतिवचन दो, उठो, चलो ॥ ५० ॥ अभी तुम बालक ही हो, अनेक कष्टोंको लगातार सहनेके कारण दुर्बल तथा कृश हो गये हो, कोई साथी अनुगामी भी नहीं है, पहिनने को कवच भी नहीं है तो भी साधारण कपड़े पहिने हुए हो तुमने अकेले ही शत्रु सेमाको मार काट करके १. [ हा वत्स जातं तव किं वदार्य ] । For Private & Personal Use Only [२४६] www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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