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________________ त्रयोदशः सर्गः विबोद्ध मिच्छाम्यहमागमः कुतः इह स्थितो वा किम ते प्रयोजनम् । क्व वा गमिष्यस्यमुतः प्रवेशान्न चेद्विरोधोऽस्ति वदार्य मे स्फुटम् ॥ २६ ॥ स तां निरीक्ष्याप्रतिरूपकारिणी विचारयामास यथावदीश्वरः। ... इयं हि कि दिव्यवधून मानुषी मनुष्यवेषा किमु राक्षसी स्वयम् ॥ २७ ॥ निराश्रये श्वापदसेविते बने व्यपेतशङ्का विजने विलासिनी । प्रवर्तितभ्रललिताननेन्दुना समेत्य मां पृच्छसि का न कस्य वा ॥ २८ ॥ निगृह्य भावं स्वमनोषितं हि सा ह्यथान्यद्वक्ता वचसाविशकिनी। व्यपेतपुण्या वसुधेश्वरात्मजा वसामि मूढेति जगाद देवता ॥ २९ ॥ "हे आर्य ? मैं जानना चाहती हूँ कि आप किस स्थानसे आये हैं ? यहाँ निवास करनेमें आपका कौनसा प्रयोजन है ? अथवा इस वीहड़ वन प्रदेशसे आप कहाँ जायेंगे ! यदि आपके प्रारम्भ किये गये प्रकृत कार्यमें उक्त प्रश्नोंके उत्तर देनेसे कोई बाधा न आती हो तो स्पष्ट करके उत्तर दीजिये ।। २६ ॥ जिसके निर्दोष एवं पूर्णरूपके साथ संसारका अन्य कोई सौन्दर्य समता न कर सकता था उस रूपवतीको देखते ही युवक राजा गम्भीर विचारधारामें बह गया था। उसने सोचा था 'क्या यह रूपराशि किसी देवकी प्राणप्रिया तो नहीं है ? मनुषी ही है ? अथवा किसी दारुण राक्षसीने वञ्चना करनेके लिए यह मानुषीका सुन्दर रूप धारण किया है ।। २७॥ यक्षिणीकी जिज्ञासा सिंहादि हिंस्र पशुओंसे परिपूर्ण इस निर्जन गहन वनमें आप निर्भय और निशंक होकर विचरती ही नहीं है अपितु अपनी । भृकुटियोंके विलास, मुखचन्द्रकी रूपचन्द्रिकाको बिखेरती फिरती हैं। यहाँपर दूर-दूर तक कोई आश्रय स्थान भी नहीं है तो भी कहीसे टपककर मुझसे प्रश्न करती है, फलतः यह कौन है तथा किसको पुत्री वा पत्नी है ? ॥ २८॥ htthREA RE [२२१॥ प्रणय-प्रस्ताव उसने उस समय अपने मनके सच्चे भावोंको छिपा लिया था, उसके मनमें कुछ था और बोलती कुछ और ही थी, उसकी एक-एक बात शंकाओंको उत्पन्न करती थी । इन परिस्थितियोंमें उसने कहा था। 'हे आर्य ! मैं एक विशाल राज्यके । अधिपतिकी औरस सन्तान हूँ, मेरा पूर्वपुण्य समाप्त हो गया है अतएव सब कुछ भूलकर और खोकर इस निर्जन वनमें अकेली | रहती हूँ।। २९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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