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________________ द्वादशः वरांग चरितम् सर्गः शार्दूललालाविलमध्वखिन्नो वरद्विपानां मदवारितिक्तम् । 'हंसांसविक्षुब्धतरङ्गमालमसंस्कृतं वारि पपौ कुमारः ॥ ७७ ॥ हस्त्यश्वयानान्यभिसंस्कृतानि आरुह्यमाणो भटसंकटेन । श्वेतातपत्रोज्ज्वलचामराङ्कः क्रीडार्थमुद्यानवनं ययौ यः।। ७८ ॥ विनष्टमार्गः स्फुटितानपादो विशीर्णवासा ग्लपिताङ्गाष्टिः । स एव पद्भयामटवीप्रदेशं खरं सपाषाणमयं चचार ॥ ७९ ॥ पुरा हि सच्चन्दनकुङ्कमाक्तः प्रदग्धकालागरुधूपितो यः। स एव संस्वेदमलाविदग्धो बभ्राम कक्षे मलिनाम्बरेण ॥ ५० ॥ चाRTERSIRIRALASAIRATRIOREITHEREnte किन्तु आज उसी राजकुमारने मार्गके परिश्रमसे थक कर ऐसे पानीको पिया था जिसमें सिंह आदि हिंस्र पशुओंकी लार घुली थी, बड़ेसे बड़े मदोन्मत्त हाथियोंके गण्डस्थलोंसे बहा मदजल भी उसमें मिलने से तीता हो गया था, तथा हंस आदि पक्षियोंने उसे इतना बिलोया था कि उसमें लहरें उठने लगी थीं इतना ही नहीं वह अनछना और अप्रासुक भी था ।। ७७ ॥ जो राजकुमार पहिले खेल कूद अथवा मनोविनोदके लिए यदि उद्यानको जाता था तो वह हर प्रकारसे सजाये गये तथा हाथियों या घोड़ों द्वारा खींचे गये यानों ( सवारियों) पर चढ़कर ही नहीं जाता था; अपितु उसके शिरपर धवल छत्र लगा रहता था, सुन्दर निर्मल चमर ढोरे जाते थे और योद्धाओंकी बड़ी भारी भीड़ उसके पीछे-पीछे चलती थी॥ ७८ ॥ किन्तु आज वही राजकुमार पथरीली, ककरीलो और अत्यन्त कठोर जंगली भूमिपर नंगे पैरों चला जा रहा था। इतना हो नहीं, वह रास्ता भूल गया था अथवा यों कहिये कि उसके सामने कोई रास्ता था ही नहीं, उसके पैरोंके तलुये और अंगुलिया ठोकर खा-खा कर फूट गये थे, काँटों और झाड़ियोंमें उलझकर कपड़े चिथड़े-चिथड़े हो गये थे तथा कोमल शरीर स्थान-स्थानपर नुच और खंरुच गया था ।। ७९ ।। पहिले जब वह राजा था तो उसके शरीरका प्रक्षालन करके उसपर उत्तम चन्दन और कुंकुमका लेप किया जाता था। इसके बाद उसे कालागरू आदि श्रेष्ठ चन्दनोंकी धपका धुआँ दिया जाता था, किन्तु आज वही सुकुमार शरीर अविरत बहे पसीने और मलसे बिल्कुल पुत गया था। इतना ही नहीं अत्यन्त मैले कूचेले चिथड़ोंसे लज्जा ढके वह गहन वनमें मारा मारा फिर रहा था ।। ८०।। HreemegeTHeamPaweeteamPSHPUReaweTHRSSRPREPAHIPARDA [२१२] १. क हस्तावलि°, [ हंसाबलि॰] । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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