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________________ द्वादशः सर्गः यद्यजनावद्हृदि सत्त्वहीनो निरर्थमासे विजने वनेऽहम् । आपत्प्रतीकारमवेक्षमाणो नावश्यमाप्स्यामि पुनविभूतिम् ॥ ५४॥ अरण्यवासो न शुभावहो मे इह स्थितेनैव गृणोऽस्ति कश्चित् । इतो वजामीति मति निधाय धुति प्रतिष्ठाप्य महानुभागः ॥ ५५॥ प्रालम्बकाद्यानि विभूषणानि भ्रष्टावशेषाण्यवलुउच्य देहात् । विसृज्य कृपे च विचिन्त्य दूरं ततः प्रतस्थे नवरोऽतिसत्त्वः ।। ५६ ॥ भुजङ्गमातङ्गविहङ्गजुष्टां महाटवों श्वापदसेवितां ताम् । अनेकवृक्षापगुल्मकक्षां चचार दिङ्मूढमतिः स एकः ॥ ५७ ॥ सूर्ये तदास्तगिरिमभ्युपेते व्याघ्रं च तत्कालमनुप्रयासम् । समीक्ष्य चासन्नतयातितर्ण नपात्मजः पादपमारुरोह ॥ ५५॥ पुरुषार्थका उदय यदि मैं कोमलांगी ललनाकी तरह मनोबलको खोकर निराश होकर इस निर्जन जंगलमें पड़ा रहता हूँ, कुछ पुरुषार्थ नहीं करता हूँ और यही आशा लगाये रहता हूँ कि अपने आप ही किसी प्रकार इस विपत्ति से मुक्ति मिल जायगी तो निश्चित है कि अब मैं पुनः राज्य सम्पदाको न पा सकूगा ।। ५४ ।। यदि मैं अब बनवास करनेका हो निर्णय कर लू तो न मेरा भला होग। और न यहाँ रहनेसे और किसीका ही कोई शुभ होगा। यह सब सोचकर उस महा-भाग्यशालो राजकुमारने धीरज बांधा और कहा, यहाँसे चलता हूँ ।। ५५ ।। इस निर्णयको करके प्रालम्बक (लम्बा हार आदि लटकते भूषण) आदि उत्तम भूषगोंको जो दौड़ते समय गिरनेसे बच गये थे उन्हें अपने आप शरीरपर से नोंचकर उप कुंये में फेंक दिया था तथा थोड़ी देर सोचकर वह महाशक्तिशाली नृपति वहाँसे किसी दूर देश को चल दिया था ।। ५६ ।।। जिस जंगलसे बह चल रहा था वह सांपों, हाथियों, भयकर पक्षियोंसे खचाखच भरा था विविध प्रकारके हिंस्र पशु सिंह आदिका तो घर ही था। उसमें पग-पग पर घने वृक्ष, छोटे छोटे पौधे, झाड़ियाँ आर खोहों समान घना वन मिलता था, हा समान ना मामलता था, वह इन सबमें से चला जा रहा था, यद्यपि उसे दिशा तक का ज्ञान न था ।। ५७ ।। इस प्रकार चलते-चलते सूर्य के अस्ताचलपर जा पहुँचते हो उसने देखा कि एक बाध उसका पीछा कर रहा था तब वह युवक राजा उसे अपने अत्यधिक निकट पाकर बड़ी शीघ्रता के साथ एक वृक्षपर जा चढ़ा था ॥ ५८ ।। For Privale & Personal use only DISCLAIMERaaनालाबाराया [२०७] Jain Education international www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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