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________________ बराङ्ग चरितम् तत्रोपविश्याप्रतिकान्तरूपः क्षुधा तृषा श्रान्ततनुढेवेन्द्रः। सशर्करापांशुखरप्रदेशे महीतले मोहमुपाजगाम ॥ ५० ॥ आप्यायितः शीतवतानिलेन शनैः समुन्मीलितचारुनेत्रः । उच्छ्वस्य दीर्घ स्वतन विलोक्य निनिन्द संसारचलस्वभावम् ॥ ५१ ॥ विचिन्त्य मातापितरौ स्वबन्धन्मित्राणि भूत्यानथ देशकोशान् । वधूच ता देववधूसमानाः क्लेशाभिभूतो विललाप तत्र ॥५२॥ शोको भवेद्वन्धुजनैवियोगाद्धयं त्वभूद्राजसुताभिमानात् । कोपोऽभवन्मन्त्रिकृतावमानाद्विरागताभदनवस्थितत्वात् ॥ ५३॥ RELIERSP द्वादशः. सर्गः वह तुरन्त मर गया था। किन्तु युवक राजाने बोचमें ही किसी बेलको पकड़ लिया था फलतः मृत्युसे बच गया और धीरे-धीरे कुएंसे बाहर निकल आया था ।। ४९ ॥ वनवासी अशरण वरांग बाहर आते ही युवराजने बैठकर मुक्तिकी साँस लो थी, किन्तु उसका अनुपम कान्तिमान तथा वलिष्ठ युवक शरीर भी भूख प्यासके कारण बिल्कुल थक गया था। परिणाम यह हुआ कि बाल, धूल, कंकड़ आदिके कारण अत्यन्त कठोर स्थलपर ही मूच्छित होकर गिर गया ।। ५० ।। किन्तु जंगलकी शीतल वायुने उसके ताप और थकानको दूर करके फिर उसमें चैतन्य भर दिया तब उसने धीरे-धीरे अपने सुन्दर नेत्रोंको खोला। आँखें खोलते हो उसने विषादसे दीर्घ साँस लेकर एक बार अपने पूर्ण शरीरपर दृष्टि डाली थी, जिसे देखते ही आपाततः उसके मुखसे संसारकी अस्थिरताको निन्दा निकल पड़ी थी॥ ५१ ।। जब उसे अपने वृद्ध माता-पिताका ध्यान आया, बन्धु बांधवों तथा मित्रोंकी मधुर स्मृतियाँ आयीं, आज्ञाकारी सेवकों, राज्य तथा खजानेके स्मरण आये तथा स्वर्गकी अप्सराओंके समान सुन्दरी तथा गुणवती स्त्रियोंके विरहके कारण हृदयमें टीस उठी तो उसका हृदय दुःखसे भर आया और वह विलाप करने लगा था ॥५२॥ कुटुम्बी, हितैषी, प्रेमियों आदिसे विरह हो जानेके कारण उसे दुःख हुआ था, किन्तु दूसरे ही क्षण उसका यह अभिमान ( आत्मविश्वास ) जाग उठा कि वह राजपुत्र है। यह सोचते ही उसे धैर्य बँधा फिर क्या था, इसके उपरान्त उसे मंत्रीका कपट याद आया और वह क्रोधसे लाल हो उठा था। दूसरे ही पल संसारको अस्थिरता पर दृष्टि पड़ते ही उसे वैराग्य हो आया था ।। ५३ ॥ १. [ शोकोऽभवद्वन्धु'] । IRATRISATISHARE [२०६] Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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