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________________ द्वादशः बराज चरितम् सर्गः समीक्षमाणा गुणवेविकायास्तस्याः सुतस्यापि वरां विभूतिम् । प्राणान्विसोलु न सहेऽति'मात्रं शिरस्तु मे विस्फुट तीव कोपात् ॥१॥ मात्रैवमुक्तो निजगी सुषेणो नैवाम्ब नाज्ञायि न चानशक्तेः (?) ।। राज्ञा कृतं वेत्त्यनवेक्ष्य सर्वमथाशिषं युद्धमति विगृह्य ॥ ११ ॥ तदैव कैश्चिन्नुपजैः सहायैरुद्यम्य खड्गं स्फुरदंशुजालम् । त्वं वा महीं पाह्यथवा वयं वा इति स्थितं मान्यरुचत्समन्त्री ॥१२॥ बचो निशम्यात्मसुतस्य राज्ञो आइय तं मन्त्रिणमात्मनोनम् । पूर्वोपचारैरभिसंप्रपूज्य वचः प्रसादमवोचदित्थम् ॥ १३ ॥ । पराक्रम करना छोड़ देता है तथा जिसके बल और पराक्रमको दूसरे लोग नष्ट कर देते हैं, उस मनुष्यके इस पृथ्वी पर जन्म लेनेसे क्या लाभ ? ॥ ९॥ में जब गुणदेवीके सौभाग्यका सोचतो हूँ और उसके पुत्रको उत्कृष्ट विभूति और वैभवका विचार करती हूँ, तब, क्रोधको अधिकताके कारण मेरा माथा फटने लगता है, तथा इन गहित प्राणोंको तो मैं अब बिल्कुल धारण कर ही नहीं सकती हूँ। १० ॥ सुषेणको दुरभिसंधि माताके द्वारा पूर्वोक्त प्रकार से लांछित किये जानेपर सुषेणने निर्वेदपूर्वक कहा 'हे माता ! मुझे इसका पता नहीं था ऐसी बात नहीं है, और न मैं कम शक्तिशालो होनेके कारण ही चप रह गया है, अथवा यह सब राजा ( मेरे पिता) के द्वारा । ही किया गया है इस बातको भी उपेक्षा करके मैं तो युद्ध करनेका निर्णय करके वहीं डट गया था ।। ११ ॥ उसी समय कुछ और राजपुत्र मेरी सहायताके लिए कटिबद्ध हो गये थे फलतः मैंने वह तलवार उठायी थी जिसकी। जाज्वल्यमान किरणों को चारों ओर चकाचौंध फैला रही थी। "हे वरांगकुमार ! तुम या हम लोग हो पृथ्वोका पालन करेंगे?" कह-कर जब मैं मैदानमें जम गया था तब मुझे उस बुड्ढे मंत्रीने रोक दिया ।। १२ ॥ मृगसेनाका कुचक्र अपने पुत्रके वक्तव्यको सुनकर रानीने अपने विश्वस्त मंत्रीको बुलाया था। आते ही पहले तो उसका खूब स्वागत । सब स्वागत सन्मान किया और उसके उपरान्त साहसपूर्वक उससे यह वचन कहे थे ।। १३ ।। WALATASTISEMERGANISAR [१९७] १.क अतिमात्रां। २.क निस्फुटति । ३.[ मां न्यरुषत् ] । www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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