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एकादशः सर्गः
सर्वान्नरेन्द्रानभिभूय भासा रराज सम्यग्युवराज एषः। प्रणष्टमेधे गगने निशायां ग्रहानिवैका परिपूर्णचन्द्रः॥७०॥ एतस्य पूजितपुण्यबीजं विद्मो वयं चेदमितप्रभस्य । विसज्य पूर्वापरयोगतार' समर्चयिष्याम इति व्यवोचत् ॥७१ ॥ दायादकानां च नृपात्मजानां चेतांसि तान्याकुलितान्यभूवन् । कुलं बलं रूपमपोह लब्ध्वा स्थानं च यन्न शलभामहीति ॥ ७२ ॥ ग्रहाश्च तारा निशि मन्दमन्दं प्रकाशमानाः पुनरर्कभासा। "आदर्शनं यान्ति यथैव लोके तथा वयं बालनपार्कभासा ॥ ७३ ।। बाल्यात्प्रभृत्येव हि मल्लयुद्धे प्रधावने वा हयवारणानाम् । पञ्चायुधे शास्त्रपरीक्षणे वा नास्मत्समो बालनृपः कदाचित् ॥ ७४ ।
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यह युवक राजा अपनी कान्ति और तेजके द्वारा समस्त राजाओं को जीत लेता है, इसकी शोभा निर्दोष और अनुकरणीय है । यह यहाँपर वैसा ही शोभित हो रहा है जैसा कि पूर्णिमाका चन्द्रमा मेघमाला के फट जानेपर आकाशके समस्त ग्रहों और नक्षत्रोंके बीच चमकता है ॥ ७० ॥
इसकी प्रभा अपरिमित है, यदि हम किसी तरह पूर्वभवमें संचित किये गये इसके पूण्यकर्मों रूपी बोज को जान पाते तो आगा पीछा सोचना छोड़कर तथा छोटे बड़ेके भेदभावको भुलाकर भक्तिभावपूर्वक इसकी पूजा हो करते, इस प्रकारसे अनेक लोग कह रहे थे ।। ७१ ॥
राजाके दूसरे पुत्र जो कि पूर्ण राज्य पानेके अधिकारी हो सकते थे, किन्तु पा न सके थे, उनके चित्त युवराज वरांग का पूर्वोक्त अभ्युदय देखकर दुखी हो गये थे । वे सोचते थे 'हम भी उत्तम कुलमें उत्पन्न हुये हैं, हम भी रूपवान हैं तथा हमारी भुजाओं में भी पराक्रम है तो भी हम राज्यलक्ष्मी के द्वारा वरण न किये गये ।। ७२ ।।
रात्रिके अन्धकार में चन्द्रमा,शनि आदि ग्रह तथा रोहिणी आदि तारे मन्द प्रकाश करते हैं, किन्तु प्रातःकाल जब सूर्य । उदित होता है तो उसके तीक्ष्ण उद्योतमें सब न जाने कहाँ लुप्त हो जाते हैं, हमारी भी यही अवस्था है, आजतक हम भी राज के भागी थे किन्तु आज से युवक राजा के प्रतापमें हम लुप्त हो गये हैं ।। ७३ ।।
आजका युवक राजा बचपन से ही मल्ल युद्ध में, दौड़में, हाथी घोड़े को सवारोमें, तलवार, भाला आदि पाँच मुख्य हथियार चलानेमें तथा शास्त्रों की सूक्ष्म गुत्थियाँ सुलझानेमें कभी भी हम लोगों की समानता न कर सका था । ७४ ।। १. [ °योग्यतां च ]। २. [ व्यवोचन् ]। ३. [ अदर्शनं । ४. क हयवारणेषु ।
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