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________________ एकादशः सर्गः HARIZEDIARRIAGEarth चलत्पताकोज्ज्वलकेतुमाला प्राकारकाञ्ची स्तुतितूर्यनादा। प्रपूर्णकुम्भोरुपयोधरा सा पुराङ्गना लब्धपतिस्तुतोष ॥ ६६ ॥ सबालवृद्धं जनमात्मनीनं पुराणि राष्ट्राणि च पत्तनानि । यानानि रत्नानि च वाहनानि समर्पयामिपतिः सुताय ॥ ६७॥ यथा मयि स्नेहनिबद्धचित्ताः सर्वे भवन्तो मम शासनस्थाः । तथावनीन्द्रास्तनयस्य नित्यं भवन्तु' वश्या इति तानुवाच ॥ ६८ ॥ जगज्जना बालनराधिपं तं श्रियोज्ज्वलन्तं नयनाभिरामम् । किरीट सत्कुण्डलहारभारं प्रोचुः समीक्ष्यात्ममनोगतानि ॥ ६९ ॥ म नगर में चारों ओर पताकाएँ लहरा रही थी, निर्मल केतु और मालाएं हर तरफ दिखायी देती थीं, नगर को परकोटा, रूपी करधनी ने घेर रखा था, स्तुति पाठक और बाजों का शोर गूंज रहा था, तथा हर स्थान पर जलपूर्ण कलशोंरूपी स्तनों को भरमार थी । इन सब सादृश्यों के कारण नगर-लक्ष्मी एक स्त्री के समान शोभाको प्राप्त थी तथा ऐसा मालूम देता था कि नगर । रूपी स्त्री युवराज रूपी वरको पाकर सन्तोष से रास-लीला कर रही है ।। ६६ ॥ इसके उपरान्त महाराज धर्मसेन ने बच्चे से लेकर वृद्धपर्यन्त अपने कुटुम्बी और परिचारकोंको, राज्य के सब नगरों पत्तनों ( सामुद्रिक नगर ) आश्रित राष्ट्रों, समस्त वाहनों, रथ आदि यानों तथा रत्नों को विधिपूर्वक अपने पुत्रको सौंप दिया । था ।। ६७॥ अधिकारार्पण उसने उपस्थित नागरिकों, कर्मचारियों, सामन्तों आदिसे यह भी कहा था कि आप लोग जिस प्रकार मुझपर प्रम करते थे, मेरे अनुगत थे तथा मेरी,आज्ञाओं और शासन का पालन करते थे उसी प्रकार आप लोग मेरे पुत्रपर सदा प्रेम करें ने और उसके शासन को मानें ।। ६८ ।। राजा वरांग बाल नपति वरांग अपनी शोभा और लक्ष्मीके द्वारा चमक रहे थे, दर्शकों की आँखें उन्हें देखकर शीतल हो जाती थीं, शिर पर बँधे मुकुट, कानों में लटकते कुण्डलों तथा गले में खेलतो मणिमाला, आदि के कारण वह और अधिक आकर्षक हो गये। थे । उनको देखते ही दर्शकों के मनमें अनेक भाव उठने लगते थे जिन्हें उन लोगों ने निम्न प्रकारसे प्रकट किया था ।। ६९ ।। [१९०] बाम । १. म भजन्तु । २.क तिरीट। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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