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________________ बराङ्ग चरितम् एकादशः सर्गः प्रातः कुमारः कृतमङ्गलार्थो जिनेन्द्रबिम्बार्चनतत्परोऽभत । ततो गुरून्साधुतमान्यप्रपूज्य पश्यत्युपस्थानगतः स्वकार्यम् ॥ ४८॥ तत्रोपविष्टो जिनदेवमार्ग प्रकाशयन्संकथयन्परेभ्यः । विचारयन् हेतुभिरप्रदृष्टः पुरोत्तमेऽरंस्त सदा वराङ्गः॥ ४९ ॥ स्थानासने निष्क्रमणे सभासू शय्याधिरोहे क्षुतज़म्भणेषु । सदा नमस्कारपदानि पञ्च करोति सद्भावपुरस्सराणि ॥५०॥ प्रजेष्टकारी' मितमृष्टभाषी विशिष्टशास्त्रार्थनिविष्टबुद्धिः।। अशिष्टशासी खलु शिष्टपालो कुदृष्टिदृष्टान्तपथैरपेतः ॥५१॥ ग्लानातिबालस्थविराङ्गनानां मर्यादया पश्यति कार्यजातम् । दयापरान्धर्मरुचीन्विनीतान्प्राज्ञांश्च सन्मानयते यथावत् ॥ ५२ ॥ SeareaRASHTeameraprasweepenetress-REARRAHames कु० वरांगको दिनचर्या राजकुमार बहुत सवेरे उठ जाता था और सूर्योदयके पहिले हो स्नानादि मांगलिक कृत्योंको समाप्त करके अष्टद्रव्यसे श्री एक हजार आठ जिनेन्द्रदेवको पूजामें लग जाता था। इसके उपरान्त गुरुओं तथा साधुओंकी यथायोग्य विनय करके उपस्थान (स्वाध्यायशाला ) चला जाता था। वहाँपर भी वह स्वके आत्माके उत्थान को प्रयत्न करता था ॥४८॥ वहाँपर बैठकर भी वह केवली प्रणीत धर्मको हो प्रभावना करता था, स्वयं समझता था तथा दूसरोंके साथ भी उसी। की चर्चा करता था । प्रत्येक बात को शास्त्रोक्त हेतुओंसे ही नहीं अपितु नतन तर्कोसे भी सोचता था। उत्तमपुरमें अब उसका मनोविनोद सदैव इस प्रकार होता था । ४९ ।। किसी स्थानपर बैठते समय, घरसे बाहर निकलनेके अवसरपर, सभामें जाते हुए, शय्यापर लेटते समय, छींक या जभायी लेनेके प्रसंग आदि सभी अवसरोंपर वह सद्भावपूर्वक पंच-नमस्कार मंत्रका उच्चारण करता था। वह इतना जागरूक था कि सदा प्रजाका भला करता था ॥ ५० ॥ जब बोलता था तो परिमित और मधुर, उसका मन शास्त्रोंके गढ़ तत्त्व समझनेमें ही उलझा रहता था, असंयमी दुर्जनोंको दण्ड देता था, शिष्ट साधु पुरुषोंका पालन करता था और मिथ्यात्व मार्गपर ले जानेवालों तथा उनके आदर्शोसे दूर रहता था ।। ५१ ॥ विविध प्रकारके रोगोंसे पीड़ित, अत्यन्त भोले अथवा मूर्ख अभिभावक होन शिशु, अत्यन्त वृद्ध तथा महिलाओंके कामों। १. क प्रचेष्टकारी। २. क पंथेरुपेतः । For Private & Personal Use Only SURGIsraiseRSEURELusaisasRTHEATRE www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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