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________________ PATR एकादशः. वराङ्ग चरितम् गृहीतसम्यक्त्वदृढव्रतात्मा आत्मषिदेवैः कृतसाक्षिकस्तु । मुनेर्गणांस्तान हृदि संविधाय' लब्धाभ्यनुज्ञः पुरमभ्यगच्छत् ॥ ४४ ॥ पुरं विशालं प्रविभक्तशालं चन्द्रांशुजालामलकीतिमालम् । अरातिसैन्यक्षपणातिकालं विवेश वृद्धः क्रमशः सलीलम् ॥ ४५ ॥ नरेन्द्रपुत्रो नगरं प्रविश्य वयोपचारं पितरौ समीक्ष्य । प्रणम्य पादं प्रणिपातनाहं सुखं निविष्टो मुनिसंकथाभिः ॥ ४६॥ तथा तपस्को विजहार यत्र ततश्चकार स्वशिरः शयानः। बालस्वभावं प्रविहाय विद्वान्प्रज्ञानवृत्ति प्रचचार धीरः ॥ ४७ ॥ सर्गः E SaksTEURRIGELUAGEDESIAFIR ATRETIRITUAzawaz गुरुवर, सच्चे देव और आत्माकी साक्षीपूर्वक लिये गये व्रतों और सम्यक्त्वके पालनमें राजकुमार अडिग और अकम्प था । मुनियों के दम, शम, त्याग आदि गुणोंकी उसके हृदयपर गहरी छाप पड़ी थी फलतः उनसे चलनेकी अनुमति प्राप्त करके उन्हीं के गुणोंको विचारता हुआ अपने नगरको चला गया था । ४४ ।। - संयत राजकुमार वह विशाल नगर भी अपने उन्नत और दृढ़ परकोटाके कारण दूरसे ही अलग दिखता था, गृहों और अन्य स्थानों पर लटकती वन्दनवार और मालाएँ चन्द्रमाकी किरणोंके जालके समान निर्मल और मोहक थीं, अपनी दृढ़ता तथा अन्य सुरक्षाओंके कारण शत्रुसेनाको नष्ट करनेके लिए यह यमसे भी भोषण था। ऐसी राजधानोमें कुमारने बड़ों के साथ धीरे-धीरे प्रवेश किया था ।। ४५ ॥ राजपुत्रने नगरमें वापिस आते ही घर पहुँचकर शिष्टाचारके अनुसार सबसे पहिले अपने माता-पिताके दर्शन किये थे, तथा पूजा और नमन करने योग्य उनके चरणोंमें प्रणाम करके वहीं शान्तिपूर्वक बैठ गया था। इसके बाद भी वह मुनिराजको ही पुण्य कथा करता रहा था ॥ ४६ ॥ उसपर मुनिराजका इतना गम्भीर प्रभाव था कि उनके चले जानेपर भी वे जिस दिशामें विहार करते थे वह सोते A समय उसी दिशाकी ओर शिर करता था। सबसे बड़ा परिवर्तन तो यह हुआ था कि अब उसने बालकों ऐसी खिलवाड़ी प्रकृति को छोड़ दिया था। अब वह विद्वान् विशेषज्ञ पुरुषोंके समान गम्भीरतापूर्वक व्यवहार करता था ॥ ४७ ।। D EI a topauasana [१८५] २. [ नयोपचारं ]। ३. [ तदा तपस्वी ] । १. [ संनिघाय ]। २४ _Jain Education international For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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