________________
वरांग चरितम्
अभेद्य मच्छेद्यमना 'हदाहमदुःखमद्वेष्यमुदार सौख्यम् अनन्त्यमग्राह्यमजात्यमृत्युं
अभव्य सत्त्वैर्मनसाप्यगम्यं गम्यं
सुनिर्मलं तद्धयपुनर्भवं
Jain Education International
(पुनर्भव्यजनैः सुखेन ।
महामुनीनामभिकाङ्क्षणीयं शिवालयं मोक्षमुदाहरन्ति ॥ १० ॥ काङ्क्षन्ति शक्रप्रमुखा नरेन्द्रा नराः प्रशंसन्ति च शुद्धिमन्तः । पाषण्डिनो यं हि परीक्षयन्ति ये तत्र गच्छन्त्यथ तान्प्रवक्ष्ये ॥ ११ ॥ क्षमा विभूषाः पृथुशीलवस्त्रा गुणावतंसा दममाल्यलीलाः । निर्ग्रन्थशूरा धृतिबद्ध कक्षास्ते मोक्षमक्षीणमभिव्रजन्ति ॥ १२ ॥ गृहीत योगव्रतभूरिसाराः । बिभ्रति भक्तिभाजः ॥ १३ ॥
आ जीवितान्ताद्दृढबद्धसत्वा
ये शीलभारं निरवद्यरूपं सुदुर्धरं
च ॥ ९ ॥
उसका छेदन-भेदन नहीं हो सकता, न वहाँ दिन है और न दिनका आतप ही है, दुःख और द्वेषसे कोशों दूर है, विशालतम सुखोंकी भी वहाँ कोई गिनती नहीं है, न उसका अन्त है । वह इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण भी नहीं किया जा सकता है, जन्ममरणसे परे है, अत्यन्त निर्मल है तथा वहाँ पहुँचनेपर फिर जन्मग्रहण नहीं करना पड़ता है ॥ ९ ॥
भव्य जीवोंके द्वारा वह बिना आयामके ही प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु अभव्यजीव मनसे उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते साक्षात् गमनकी तो बात ही क्या है ? श्रेष्ठसे श्रेष्ठ उग्र तपस्वी यतिराज भी जिसे पानेकी अभिलाषा करते हैं उसे ही शिवालय ( कल्याणोंका घर ) या मोक्ष कहते हैं ॥ १० ॥
इन्द्र आदि प्रधान देव तथा चक्रवर्ती आदि प्रधान राजा भी उसको आकांक्षा करते हैं, अन्तरंग बहिरंग शुद्धियुक्त श्रेष्ठ पुरुष भी उसका गुणगान करते हैं तथा संसारके समस्त पाखण्डी ( दार्शनिक ) जिसकी तर्ककी कसौटीपर कसके परीक्षा ( युक्तियों द्वारा सिद्ध) करते हैं। अब जो जीव उसे प्राप्त करते हैं उनका वर्णन करता हूँ ॥ ११ ॥
मोक्ष गामी
क्षमा ही जिनका प्रधान अलंकार है, विपुल ( उत्तम ) चरित्र ही जिनका वस्त्र है, शान्ति आदि गुण ही जिनका मुकुट हैं, इन्द्रिय मनका दमन ही जिनकी सुन्दर माला है, तथा धैर्यरूपी कांछ जिन्होंने बाँध ली है ऐसे दिगम्बर मुनिरूपी वीर ही मनुष्य जीवनकी समाधिपर अनन्तकाल पर्यन्त स्थायी मोक्षको गमन करते हैं ॥ १२ ॥
जीवनका अन्त उपस्थित होनेपर भी जिनकी सामर्थ्यं और दृढ़ता बिखरती नहीं है, अनेक प्रकार के योगों और समस्त
१. कमाह ।
For Private & Personal Use Only
दशमः
सर्गः
[ १६२ ]
www.jainelibrary.org