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________________ याचार बराङ्ग चरितम् दशमः सर्गः दशमः सर्ग ऐकान्तिकात्यन्तिकनित्ययुक्त कर्मक्षयोद्भूतमनन्तसौख्यम् । शृणु त्वमेकाग्रमना नरेन्द्र समासतो मोक्षमुदाहरिष्ये ॥१॥ सर्वार्थसिद्धस्तु विशालकीर्तेर्गत्वोपरि द्वादश योजनानि । प्राग्भारभूमिर्नरलोकमात्रा श्वेतातपत्राकृतिरुद्वभाति२ ॥२॥ बाहुल्यमष्टौ किल योजनानि मध्यप्रदेशे नरदेव विद्धि । अमुल्यसंख्येयविभागतोऽन्ते प्रहोयते सा खल सर्वदिग्भ्यः ॥३॥ संख्यानतस्तस्त्रिगुणाधिकश्च तस्याः परिक्षेपविभाग उक्तः । यत्रासतेऽनिन्द्रियसौख्ययुक्ताः सिद्धा विशुद्धा इति शब्दमानाः ॥ ४ ॥ TRAII-RIचारनामस्म दशम सर्ग ज्ञानावरणो आदि आठों कर्मोंका सांगोपांग क्षय हो जानेसे प्रकट हुआ अनन्त सुख ऐकान्तिक (अद्वितीय ) है उसमें कभी भी दुःख लेशका समावेश नहीं होता है, वह सुखको चरमसीमा और परम विकास है तथा वह अपने पूर्णरूपमें सदा ही विद्यमान रहता है । अतएव हे नरेन्द्र ! आप इसे ध्यान लगाकर सुनिये मैं संक्षेपसे कहता हूँ॥१॥ मोक्ष स्थान जिस सर्वार्थसिद्धि विमानको कीतिको आगम में विस्तारपूर्वक गाया है, उसके भी ऊपर बारह योजन जाकर 'प्रारभार' नामकी भूमि है जिसका व्यास तथा परिधि मनुष्यलोक ( ढाई द्वीप प्रमाण ) के समान है। उसका आकार भी दुग्ध-धवल छातेके समान है ॥२॥ हे नरदेव ! इस प्राग्भार पृथ्वीको मोटायी मध्यमें आठ योजन प्रमाण समझिये, इसके बाद मध्य या केन्द्रसे आरम्भ करके सब दिशाओंकी ओर उसकी मोटायी घटती गयी है और अन्तमें अंगुलके असंख्येय भागसे भी कम रह गयी है ।। ३ ।। गणित शास्त्रकी विधिके अनुसार उसकी परिधिका विस्तार उसके व्यास ( ढाई द्वीपके व्यास ) के तिगुनेसे भी कुछ अधिक है ऐसा लोकविभाग प्रकरणमें कहा है। इस क्षेत्रके ऊपर ही सिद्धलोग विराजते हैं जो कर्ममलसे रहित हैं तथा अतीन्द्रिय सुखके भण्डार हैं अतएव वे 'विशुद्ध सिद्ध' शब्दसे पुकारे जाते हैं ।। ४ ।। 5_१. [ °नित्यमुक्तं ]। २. [ °विभाति ] । । १६० Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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