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देवानां सुकृतफलान्यथाभिधाय सिद्धानां त्रिभुवनमस्तकस्थितानाम् । तत्सौख्यं परमपदेच शाश्वतं यत्प्रारेभे क्षितिपतयेऽभिधातुमीशः॥ ६२॥ इति धर्मकथोद्देशे चतुर्वर्गसमन्विते स्फुटशब्दार्थसंदर्भे वराङ्गचरिताश्रिते
देवलोकवर्णनो नाम नवमः सर्गः ।
नवमः
चरितम्
सर्गः
पुण्यके परिपाक होनेपर स्वयं समागत स्वर्गीय सुखोंका व्याख्यान करनेके उपरान्त, तीनों लोकोंके ऊपर विराजमान, मोक्ष महापदको प्राप्त तथा अनन्तकाल पर्यन्त स्थायी अतीन्द्रिय सुखों स्वरूप सिद्धोंका स्वरूप राजा धर्मसेनको समझानेकी इच्छासे केवली प्रभुने मोक्षके विषय में कहना प्रारम्भ किया था ।। ६२ ।।
चारों वर्ग समन्वित, सरल शब्द-अर्थ-रचनामय वराङ्गचरितनामक धर्मकथामें
देवलोक वर्णन नाम नवम सर्ग समाप्त ।
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