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________________ बराङ्ग चरितस् एकै वृद्धिर्नव क्रमेण ग्रैवेयकेषु क्षितिपोपदिष्टा । सर्वार्थसिद्धेः खलु लोकमूनि त्रिशस्त्र'यश्चैव समुद्रसंख्याः ।। ५८ ॥ त्रिशून्यपूर्वास्तु दशैव वर्षा जघन्यतस्ते भवनेषु तेषु । तथैव ते व्यन्तर देववर्गे परावरज्ञाः परिमाणमाहुः ॥ ५९ ॥ ज्योतिष्मति ज्योतिषदेवलोके पल्योपमस्याष्टमभागमाहुः । एकं च पल्यं प्रथमे च कल्पे उत्कृष्टमेवोपरि तज्जघन्यम् ॥ ६० ॥ इत्येवं सुरनिलयांश्चतुष्प्रभेदानादित्यस्फुरितमयूख जालभासः । सद्धर्मप्रभवसुखाश्रयान्विचित्रान्संक्षेपाद्य तिपतिरेवमाचचक्षे ॥ ६१ ॥ उत्तम आयु अठारह सागर है, इसके ऊपर आनत-प्राणत कल्पों में बीस सागर है तथा आरण और अच्युत नामके स्वर्गो में बाईस सागर प्रमाण है ॥ ५७ ॥ हे पृथ्वीपालक ? इसके ऊपर प्रत्येक ग्रेवेयक में क्रमशः एक-एक सागर आयु बढ़ती जाती है अर्थात् अन्तिम ग्रैवेयक में उत्कृष्ट आयुका प्रमाण इकतीस सागर गिनाया है, विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित कल्पोंमें बत्तीस सागर है तथा लोकके शिखरपर स्थित सर्वार्थसिद्धि विमान में उत्पन्न देवोंकी उत्कृष्ट आयुका प्रमाण तैंतीस सागर है ॥ ५८ ॥ जघन्य आयु पूर्वोक्त भवनवासी देवोंकी जघन्य आयुका प्रमाण (तीन शून्योंके पहिले दश वर्ष ( १०,०००) लिखनेसे ) अर्थात् उनकी जघन्य आयु दश हजार वर्ष है। उत्कृष्ट और जघन्य आयुके प्रमाणके विशेषज्ञोंने इसी प्रकार व्यन्तरों की भी जघन्य आयुको गिनाया है, अर्थात् दश हजार वर्ष बताया है ।। ५९ ।। जाज्वल्यमान उद्योतके पुज ज्योतिषी देवोंके लोकमें उत्पन्न हुये देवोंको कमसे कम अवस्थाका प्रमाण एक पल्यका आठवाँ भाग होता है । प्रथम सौधर्म और ऐशान कल्पमें जघन्य आयुका प्रमाण एक पल्य है इसके आगे पहिलेकी उत्कृष्ट आयु ही उसके अगले कल्प में जघन्य हो जाती है। यथा - सौधर्मं - ऐशानकल्पकी उत्कृष्ट आयु दो सागर हो सानत्कुमार माहेन्द्रकल्प में जघन्य हो जाती है ॥ ६० ॥ मुनियोंके अग्रणी श्रीवरदत्त केवलीने समीचीन धर्मके पालन करनेसे प्राप्त होनेवाले सुखोंके स्थान तथा अपनी छटाके द्वारा सूर्यके किरण जालके समान चारों प्रकारके देवलोकोंका उक्त प्रकारसे अत्यन्त संक्षेपमें वर्णन किया था ।। ६१ ।। १. त्रिंशत्य || Jain Education International For Private Personal Use Only नवमः सर्गः [१५८ ] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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