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________________ जराङ्ग चरितम् जितेन्द्रिया जीवदयाप्रवृत्ता वर्षावकाशातपवासयोगाः । जितोपसर्गास्तु विचूर्णिताशाः कल्पेश्वरास्ते पतयो भवन्ति ॥ ३५ ॥ येषां च सज्ज्ञानमुदारवृत्तं सद्दर्शनं चापि तपो विशुद्धम् । वैकादावहमिन्द्रलोके ते संभवन्तीति नरेन्द्र विद्धि ॥ ३६ ॥ ra मेघा शनिशक्रचापविद्युतडित्केतुहिमाम्बुवर्षाः । नभस्तलेऽस्मिन्सहसा भवन्ति तथा सुराणामपि जन्म वेद्यम् ॥ ३७ ॥ उत्पद्यमानाः शयनीयपृष्ठे अन्तर्मुहूर्तात्परिनिष्ठिताङ्गाः । व्याभासमानाश्च दिशो दशापि तपःफलं तेऽनुभवन्ति हृष्टाः ॥ ३८ ॥ प्राणिमात्रकी रक्षा करनेके लिए जो प्रमाद त्याग कर प्रयत्न करते हैं, स्पर्श आदि पाँचों इन्द्रियोंको जो जीत लेते हैं, वर्षाऋतुमें खुले प्रदेशमें (वर्षावास आदि ) तथा ग्रीष्म ऋतुमें उष्ण प्रदेशमें जो ध्यान लगाते हैं, भूख, प्यास आदि परीषहोंपर जो पूर्ण विजय पा लेते हैं तथा आशारूपी बंधनको जो चूर-चूर कर देते हैं वे ही जीव मरकर कल्पोंके अधिपति इन्द्र होते हैं ॥ ३५ ॥ जिन्होंने निर्दोष सम्यक् ज्ञानकी उपासना को है, अतिचाररहित विशाल सम्यक् चारित्रके जो अधिपति हैं तथा शंका आदि आठ दोषोंसे रहित परम पवित्र सम्यक्दर्शन भी जिनको सिद्ध हो गया है, वे रत्नत्रय विभूषित जीव हे भूपते ! नव ग्रैवेयकोंसे प्रारम्भ करके अहमिन्द्र आदि लोकपर्यंन्त जन्म ग्रहण करते हैं आप ऐसा समझें || ३६ || देवजन्म हमारे नभस्तलमें घनघटा, वज्रपात, इन्द्रधनुष, विद्युतप्रकाश, मेघोंकी गर्जना, धूमकेतु या पुच्छलतारेका उदय, वृष्टि तथा हिमवृष्टि जिस प्रकार अकस्मात् होते हैं उसी प्रकार स्वर्गलोक में देवोंका जन्म भी पहिलेसे कोई चिह्न न होते हुये भी सहा होता है ॥ ३७ ॥ वे अत्यन्त रमणीय शय्या ( जिसको इसी कारणसे उत्पाद शय्या कहा है) पर जन्म लेते हैं मुहूर्त के भीतर ही उनका संपूर्ण शरीर परिपूर्ण हो जाता है तथा उसके सब संस्कार भी हो लेते हैं। हैं तो उनकी कान्तिसे दशों दिशाएँ जगमगा उठती हैं, वे परम प्रसन्न रहते हैं और आनन्दसे अपने हैं ॥ ३८ ॥ Jain Education International Ro तथा जन्म लेते ही एक इसके बाद जब वे उठते पूर्वकृत तपका फल भोगते For Private Personal Use Only नवमः सर्गः [ १५३] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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