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________________ वराङ्ग चरितम् पाषण्डिनो ये जलवायुभक्षा व्रतोपवासैरकृशाः कृशाङ्गाः । बालाः स्वयं बालतपोभिरुग्रः पञ्चाग्निमध्ये च तपश्चरन्ति ॥ २७ ॥ asकामतो चरन्ति लोके बद्धाश्च रुद्धाः खलु चारकस्थाः । ब्रह्म परादिताः क्लेशगणान्सहन्ते ते सर्व एवामरतां लभन्ते ॥ २८ ॥ जलप्रवेशादनलप्रवेशान्मरुत्पपाताद्विषभक्षणाद्वा ' 1 शस्त्रेण रज्ज्वात्मवधाभिकामा अल्पविकास्ते दिविजा भवन्ति ॥ २९ ॥ अणुव्रतानां च गुणव्रतानां शिक्षाव्रतानां परिपालका ये । संभूय सर्वोद्धमतीन्द्रलोके महद्धकास्ते त्रिदशा भवन्ति ॥ ३० ॥ सत्यज्ञान और आचरण से अनभिज्ञ होते हुए भी जो तपस्याका स्वांग रचते हैं, महिनों केवल वायु और पानी पर ही रहकर ' कायक्लेश' करते हैं, सतत व्रत और उपवास करनेपर भी जिनका मन विषयोंसे विरक्त नहीं होता है यद्यपि शरीर कृश हो जाता है, ज्ञानहीन होने के कारण जो अज्ञानियों की विधिसे उग्र तप करते हैं जैसे कि चारों तरफ चार ज्वालाएँ जलाकर ग्रीष्मके मध्याह्नमें सूर्यकी तरफ देखते हुये पंचाग्नि तप करना आदि || २७ ॥ जो बिना किसी अभिलाषा या आसक्तिके ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं अथवा अन्य संयम करते हैं, सांसारिक कारणों से बन्धनको प्राप्त होनेपर, किसी स्थान विशेषपर ही रोके जानेपर, चरों ( खुफिया ) या अन्य राज्यकर्मचारियोंके द्वारा विविध प्रकारसे वेदना दिये जानेपर जो अनेक कष्टोंको साहसपूर्वक सहते हैं वे सबके सब अमरता ( देवगति ) को प्राप्त करते हैं ॥ २८ ॥ पानी में डूबकर जलती आगमें कूदकर, पर्वतसे गिरकर घातक विष पान करके, किसी शस्त्र के द्वारा तथा रस्सीमें गला फंसाकर जो लोग आत्महत्या करनेका प्रयत्न करते हैं उन्हें भी देवगति प्राप्त होती है। हाँ इतना निश्चित है उनकी ऋद्धियाँ बहुत ही कम होती हैं ।। २९ ।। Jain Education International उत्तम देवगति के कारण हंसा आदि पाँचों व्रतोंका आंशिक स्थूल ( अणुव्रतों ) पालन तथा दिग्व्रत आदि गुणव्रतों तथा सामायिक आदि चारों शिक्षाव्रतोंका निरतिचार रूपसे पालन करनेवाले पुरुष उन स्वर्गीमें जन्म लेते हैं जहाँपर सब ऋद्धियाँ सुलभ ही नहीं हैं। अपितु अपने चरम विकासको प्राप्त हैं। इस प्रकार वे महद्धिक देव होते हैं ॥ ३० ॥ १. म रुद्राः । २. कनरुत्प्रतापाद, [तरुप्रपाताद् ] । For Private & Personal Use Only नवमः सर्गः [१५१ ] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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