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________________ नवमः वराज चरितम् सर्गः प्रवालमुक्तामणिहेमजालैर्घण्टारवोन्मिश्रितकिङ्किणीकैः । विचित्ररत्नस्तवकावलोभिः पर्यन्तलम्बैरतिशोभितानि ॥१८॥ माहेन्द्ररत्नोज्ज्वलमालिकानि विशुद्धरूप्यच्छदपाण्डुराणि । विशिष्टजाम्बूनदभित्तिकानि महा_रत्नाचितभूतलानि ॥ १९ ॥ स्वभावशुभ्राणि महाद्युतीनि समीक्ष्य नृणां नयनामृतानि । अकृत्रिमाण्यप्रतिमानि नित्यं विमानमुख्यानि विभान्ति तत्र ॥ २०॥ द्वारैश्च जाम्बूनदबद्धमूलैः स्फुरत्प्रभ जमयैः कबाटैः। सोपानदेशैस्तपनीयबद्धभिन्नान्धाकाराणि महागहाणि ॥ २१ ॥ सूर्यप्रभैः सूर्यगभस्तितुल्यैश्चन्द्रांशुजालाधिकचन्द्रकान्तः । शुक्रप्रभैः शक्रसमानभाभिर्बलत्प्रभैः प्रज्वलदग्निकल्पैः ॥२२॥ विमानोंके चारों ओर मगा, मोती, मणि और सोनेकी मालाएँ तथा जालियाँ लटकती हैं, उनमें लटके हुए घण्टोंके गम्भीर घोषके साथ छोटी घटियों की टुनटुन ध्वनि अति मनोहर होती है, चारों ओर फैले हुए अद्भुत रत्नोंके गुच्छोंकी पंक्तियोंके द्वारा उनको शोभा अत्यधिक बढ़ जाती है ।। १८ ॥ विमानोंके चारों ओर लटकती झालरें महेन्द्रनील मणियोंसे बनायो गयी हैं, ऊपरकी छत अथवा चन्दोवे अत्यन्त शुभ्र (निर्दोष ) चाँदीसे बने हैं, समस्त भित्तियाँ भी विशेष प्रकारके सोनेको बनी हैं तथा धरातल भी महामूल्यवान रत्नोंको जड़कर बनाया गया है ।। १९॥ बिना किसी प्रकारके प्रयत्नके ही विमान निर्मल और भासुर रहते हैं, उनकी चमक कभी घटती नहीं है, देखनेपर ऐसे लगते हैं मानों आँखोंके लिए अमृत ही हैं, उन्हें कोई शिल्पकार नहीं बनाता हैं वे अकृत्रिम हैं, उनका उपमान खोजना भी कठिन है। ऐसे इन्द्रक विमान स्वर्गों में सदा ही सुशोभित होते हैं ।। २० ॥ .. उनके द्वार जाम्बुनद सोनेके द्वारा ही नीचेसे ऊपर तक बने हैं, किवाड़ वज्रके हैं जिनकी प्रभा चारों ओर दूर-दूर तक फैली है, दरवाजोंके आगेकी तथा अन्य सीढ़ियाँ तपनीय स्वर्णसे बनायी गयी हैं। इस प्रकार प्रकाशमय पदार्थोसे निमित होनेके कारण उन विशाल विमानोंमें कहीपर हल्का सा अन्धकार भी नहीं ठहरता ॥ २१ ॥ विमानोंका विशेष वर्णन सूर्यके उद्योतके समान जाज्वल्यमान सूर्यकान्त मणियों द्वारा, चन्द्रमाकी किरणोंसे भी अधिक कान्तिमान चन्द्रकान्त १. म° चूलितानि । चामाज्यारन्मामा- मामाचा Jain Education interational For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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