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बराज
चरितम्
मयूरपारापतकण्ठशालप्रवालजात्यजनदुग्धवर्णः व्याभिन्नपहरितालभेदैः समानवर्णान्यपराणि भान्ति ॥ १४ ॥ आदित्यतेजोऽधिकदीप्तिमन्ति कान्त्या पुनश्चन्द्रमसोऽधिकानि । दशार्धवर्णानि मनोहराणि मणिप्रभापल्लवितध्वजानि ॥ १५ ॥ ज्वलगृहबत्नमयविचित्रैर्वैडूर्यनस्तिपनीयकुम्भैः । वजोपधानः स्फटिकोपलस्थस्तम्भमंगाईः सततं वृतानि ॥ १६ ॥ पथग्विधैर्यगंजवाजिरूपतः शकुन्तैर्मकरेलताभिः । भित्याश्रितस्तैर्मनसाप्यचिन्त्यैः प्रकल्पितान्येव' च सर्वकालम् ॥ १७॥
मामा-NIRMAHAMANCHASE
है, अन्य विमानोंकी प्रभा शिरीषके पुष्पोंके तुल्य है दूसरे विमानोंकी कान्ति इन्द्रधनुषके समान अनेक रंगकी है, शेष अनेक १ बिमानोंकी छटा भी अद्भुत है ।। १३ ।।
कुछ विमानोंका रंग मोर और कबूतरके गलेके समान है, कुछ शंखके समान श्वेत हैं, दूसरे मूंगेके तुल्य लाल हैं, कुछ जातिके पुष्प और दुग्धके समान धवल हैं, कितनोंका रंग अंजनका-सम है, कितने ही नीले, लाल और श्वेत कमलोंके रंगसे भुषित हैं तथा अन्य कितनोंका ही हरिताल सदृश रंग है ।। १४ ।।
विमान शोभा उन सब विमानोंकी दीप्ति मध्याह्नके सूर्यके तेजसे भी बढ़कर है, यदि उनकी कान्तिपर दृष्टिपात करिये तो उसे चन्द्रमासे भी बढ़कर पाइयेगा। उनके रंग यद्यपि दशके आधे पाँच रंगोंमेंसे ही कोई न कोई हैं तो भी वे अत्यन्त मनमोहक हैं, दुरतक फैली हुई मणियोंकी प्रभा ही उनके ऊपर फहरायी गयी ध्वजाओंका कार्य करती है ।। १५ ।।
जगमगाते हुए बड़े-बड़े रत्नोंसे परि ण तथा बीच बीच में वैडूर्य मणियोंसे खचित (चन्द्रमाके विविध रूपों की नक्कासी) सुन्दर स्वर्णमय कलशों, वज्रसे निर्मित आसन ( कुर्सी ) युक्त तथा बृहत् स्फटिक मणिको शिला पर खड़े किये विशाल मृगाङ्कयुक्त स्तम्भोंसे सदा सब ओरसे घिरे हुए हैं ।। १६ ॥
विमानोंकी भित्तियोंपर पृथक-पृथक आकार और प्रकारके बनाये गये हाथी, घोड़ा आदिके चित्र, पक्षी, जलजन्तु मकर, आदि तथा लता कुंज आदिको चित्रकारी सदा ही उन्हें सुशोभित करती है, वह इतनी अद्भुत है कि उसके रूप रंगकी मनके द्वारा कल्पना भी नहीं की जा सकती है ।। २७ ।।
ARTHREATRIRTAI-RIमच्याच
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१. म प्रकल्प्य तान्येव । Jain Education interational
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