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बराङ्ग चरितम्
यमानतं तन्नवमं वदन्ति स प्राणतो यो दशमस्तु वर्ण्यः । एकादशं त्वारणमामनन्ति तमारणं द्वादशमच्युतान्तम् ॥ ९ ॥ कल्पोपरिष्टादहमिन्द्रलोका ग्रैवेयकास्ते नवधा विभक्ताः । त्रयस्त्वधस्तात्रय एव मध्या ऊर्ध्वं त्रयश्चोत्तरवृद्धसौख्याः ॥ १० ॥ ग्रैवेयकेभ्यस्तु महाद्युतिभ्यः पञ्चोपरिष्टाद्विजयं जयन्तम् । तं वैजयन्तं ह्यपराजितं च सर्वार्थसिद्धि च विमानमाहुः ॥ ११ ॥ मध्ये भवन्तीन्द्रक संज्ञकानि श्रेणीगतान्यप्रतिभासुराणि । प्रकीर्णकानि प्रततानि राजन् विमानमुख्यानि विभान्त्यजत्रम् ॥ १२ ॥ दूर्वाङ्करश्यामलविग्रहाणि शुकच्छदाभान्यपराणि तानि । शिरीषपुष्पप्रतिमप्रभाणि सन्तोन्द्रगोपप्रतिमद्युतोनि ॥ १३ ॥
किया है, ग्यारहवें कल्पको आरण नाम से
आनत स्वर्गको नौवाँ कल्प कहा है, प्रानत स्वर्गको दशम स्वर्गं रूपसे वर्णन समझाया है तथा आरणके बाद बारहवें स्वर्गका नाम अच्युत है । यह अन्तिम कल्प है क्योंकि इसके बादका देवलोक कल्पातीत है। सौधर्म आदि सोलह कल्पोंके ऊपर सारस्वत, आदित्य आदि अहमिन्द्र वर्गके देवोंका लोक है ।। ९ ।।
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अहमिन्द्रलोकसे ऊपर लोककी ग्रोवाके समान ग्रैवेयक लोक है इसके निवासी नो वर्गोमें बँटे हैं। इन नौमें तीनको अधो- ग्रैवेयक कहते हैं, मध्य में पड़े तीनोंका नाम मध्य-ग्रैवेयक है और ऊपरके तीनोंकी संज्ञा ऊर्ध्व-ग्रैवेयक है इनमें नीचे की ओरसे आरम्भ करके आगे-आगे (ऊपर) सुख बढ़ता ही जाता है ॥ १० ॥
अपने विमानों की सम्पत्ति तथा कान्तिसे अत्यन्त भासुर नव ग्रैवेयकों के ऊपर परमपुण्यमात्माओंके जन्मस्थान विजय, जयन्त, वैजयन्त, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्धि नामके पाँच विमान एक दूसरे के ऊपर-ऊपर हैं ॥। ११ ॥
स्वर्ग पटलोंका विन्यास
इन स्वर्गीमें विमानोंकी रचना इस प्रकार है-मध्यमें 'इन्द्रक' या प्रधान विमान होता है, फिर उसकी दिशाओं और विदिशाओं में (आग्नेय, नैऋत, वायव्य, ईशान) श्रेणीबद्ध विमानोंकी पंक्तियाँ होती हैं । इन श्रेणीबद्ध विमानोंकी ज्योति अनुपम होती है, इन पंक्तियोंके आसपास जो विमान बिना क्रमके फेले हैं वे 'प्रकीर्णक' विमान हैं। इनमें जो इन्द्रक या प्रधान हैं उनकी शोभा चिरस्थायी तथा अलौकिक है ॥ १२ ॥
कुछ विमानों का रंग नूतन निकले दुबके अंकुरों के समान हरा है, दूसरे कुछ विमानोंकी छटा तोतेके पंखोंके रंग सदृश १. क यमामनन्तं नवमं । २. म पुस्तक एवाधिक पाठान्तरम् 'नवोपरिष्टादहमिन्द्रकल्पास्तेभ्यो महाकान्तिसमन्वितेभ्यः' ।
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नवमः
सर्गः
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