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वराङ्ग
नवमः सर्गः
नवमः सर्गः ततः प्रवक्ष्ये नप देवलोकांश्चतुर्विधान्सस्कृतिनां निवासान् । वैमानिकानां भवनाधिपानां ज्योतिर्गणव्यन्तरसंज्ञकानाम् ॥१॥ दश प्रकारा भवनाधिपानां ते व्यन्तरास्त्वष्टविधा भवन्ति । ज्योतिर्गणाश्चापि दशार्धभेदा द्विषट्प्रकाराः खलु कल्पवासाः॥२॥ ये कल्पवासा गणनाव्यतीतास्तेभ्यो प्रसंख्या' भवनाधिवासाः । तेभ्योऽधिका व्यन्तरदेवसंज्ञा ज्योतिर्गणास्त्वभ्यधिकाश्च तेभ्यः ॥३॥ सुपर्णनागो दधिदिक्कुमारा दीपारग्निविद्युत्स्तनितानिलाश्च । वशोपदिष्टास्त्वसुरैः सहैते द्वौ द्वावधेन्द्रास्तु भवन्ति तेषाम् ॥४॥
नाममायाराम-राम
नवम सर्ग
देव भेद हे राजन् ! मनुष्यगतिके बाद अब आपको मैं साधारणदृष्टिसे चार प्रकारके देवलोकका वर्णन कहता हूँ, जहाँपर पूर्वजन्ममें पुण्य करनेवाले, वैमानिक अथवा सोलह कल्पवासी, भवनोंके अधिपति (भवनवासी), जोतिर्गण ( ज्योतिषी) तथा । व्यन्तर नामघारी देवोंका निवास है ॥ १ ॥
भवनवासी देवोंके विशेषभेद असुरकुमार आदि दश हैं, किंपुरुष, किन्नर, आदि व्यन्तर देवोंके अवान्तरभेद कुल आठ ही हैं। ज्योतिषी देवोंके भेद सूर्य, चन्द्र आदि पाँच हैं और कल्पवासी देवके विशेषभेद इन्द्रोंकी अपेक्षा दोगुने छह अर्थात् बारह हैं ॥२॥
वैमानिक देवोंका प्रमाण गणनासे परे है अर्थात् वे असंख्यात हैं, भवनवासो देवोंकी संख्या कल्पवासियोंसे भी बहुगे। अधिक है, व्यन्तर देवोंकी संख्या भवनवासियोंसे भी अधिक है और ज्योतिषी देवोंकी संख्या तो व्यन्तरोंसे भी अधिक है ॥ ३ ॥
भवनवासी सुपर्णकुमार, नागकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, द्वीपकुमार, अग्निकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार, अनिलकुमार तथा इनमें असुरकुमारको जोड़ देनेषर भवनवासी देवोंके दश भेद होते हैं। इनके एक-एक वर्ग असुरकुमार आदिमें दो-दो इन्द्र होते हैं ॥ ४॥
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१.[तेभ्योऽतिसंख्या ]।
२.द्विीपाग्नि]।
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