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________________ ਚh वराङ्ग बरितम् तादग्विधं कश्मलमुद्वहंस्तु बीभत्मचर्मास्थिशिराप्रणद्धम् । पित्तानिलश्लेष्मजराधिवासं को नाम विद्वान्वहतोह गर्वम् ॥ ६३ ॥ विज्ञानरूपद्युतिकान्तिसत्त्वं सौभाग्यबुद्धीन्द्रियबन्धवित्तम् । आयुर्वपुमित्रसमागमाश्च क्षणे क्षणेऽन्यत्वमुपैति सर्वाम् ॥ ६४ ॥ सन्ध्याभ्ररागस्तनयित्नुविद्युत्फेनोमिफुल्लद्रुमबुद्बुदाभम् तृणाग्रलग्नोदकबिन्दुतुल्यं मायोपमं मानुषजन्म शश्वत् ॥ ६५ ॥ गर्भेऽथ जातावथ बाल्यकाले तथा युवत्वे स्थविरत्वयोगे । अशौचताप्यध्रुवता रुजात्वं सर्वत्र सर्वस्य हि कर्मभूमौ ॥ ६६ ॥ इसमें अनेक प्रकारके कीटाणु व्याप्त हैं, इसीलिए सैकड़ों रोग इसे घेरे रहते हैं। फलतः यह शरीर अपने प्रारम्भसे लेकर अन्ततक 1 अशुचि ही है ।। ६२॥ इस तरहके मलिन पदार्थोंको ढोते हुए जो कि अत्यन्त तीव्र घृणाको उत्पन्न करनेमें समर्थ हड्डी, शिरा, तथा चमड़ेसे ढके हुये हैं, इतना ही नहीं, इन सबके साथ दुषित वात, पित्त, कफ, बुढ़ापा आदि भी लगे हैं, तो कौन ऐसा पुरुष है जो इस I शरीरके कारण किसी भी प्रकारका अभिमान करेगा ।। ६३ ॥ मानव पर्यायकी अनित्यता इस मनुष्यका विज्ञान, रूप, कान्ति, तेज, सामर्थ्य, दूसरोंसे किया गया स्नेह, सम्मान आदि बुद्धि, पदार्थोंके ग्रहणमें तीव्र १ इन्द्रियाँ, सगे सम्बन्धी, सम्पत्ति, आयु, आदर्श शरीर मित्र तथा उनकी सत्संगति सबही क्षायोपशमिक होनेके कारण क्षण-क्षणमें बदलते रहते है ॥ ६४ ।। यह मनुष्यभव सन्ध्या समय मेघों पर चमकती लालिमा, गरजते और बरसते बादलोंमें कौंधनेवाली निजलीकी चमक, जलपर तैरते फेन या उठती हुई लहरों. वृक्षोंके फूल, पानीके ऊपर तैरते बुदबुद तथा शरत समयमें दुबके ऊपर अटकी ओसकी बूंद अथवा इन्द्रजालियेकी मायाके समान क्षण भर ठहरने वाला है ।। ६५॥ इसके सिवाय कर्मभूमिमें जन्मे जीवको माताके गर्भमें, जन्मके समय या बादमें ज्ञान हीन बाल्य अवस्थामें, प्रमाद बहल युवा अवस्थामें तथा शारीरिक और मानसिक दुर्बलताके भण्डार बुढ़ापेमें सव स्थानोंपर सब प्रकारके रोगोंकी संभावना है, अपवित्रता और अनित्यता तो पीछा छोड़ती ही नहीं है ।। ६६ ।। १.[ सर्वम् ]। २. म बाल । thਬ ਦੀ ਓਜ਼Eh ३] For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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