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________________ सप्तमः वराङ्ग चरितम् राजस्त्रिपल्योपमजीविनस्ते हर्याहका रम्यकवासिनश्च । तान्द्विद्विपल्यद्वयजीविनश्च सुवेषयुक्तास्सुखवाधिमग्नाः ॥ ६२॥ हैरण्यका हैमवता नरा ये तेषां तु पल्योपममेकमाहुः । सर्वे च भोगाननुभूय पश्चाद्दिवं प्रयान्ति क्षतजम्भमात्रात् ॥ ६३ ॥ नात्मप्रशंसा न परापवादा मात्सर्यमायामदलोभहीनाः । स्वभावतस्ते सुविशुद्धलेश्या यस्मादतस्ते दिवमेव यान्ति ॥ ६४ ।। चक्रायुधस्याप्रतिशासनस्य दशाङ्गभोगप्रभवाच्च सौख्यात् । यद्भोगभूमिप्रभवं त्वनन्तं तत्सौख्यमित्येवमुदाहरन्ति ॥ ६५ ॥ सर्गः BACHARASTRAPATRATEepreseaweeTAMATIPATIPATHIPAT भोगभूमि-स्थिति ( आयु) जो उत्तरकूर और देवकूरुमें जन्म लेते हैं, हे राजन् ! उनकी अवस्था तीन पल्य प्रमाण होती है । मध्यम भोगभूमि अर्थात् हरि और रम्यक क्षेत्रोके निवासी जीवोंकी आयुका प्रयाण दो, दो पल्य है। यह सब भी उक्त प्रकारसे उत्तम वेशभूषाको धारण करते हैं और समस्त सुखोंके समुद्रमें डूबे रहते हैं ।। ६२ ।। जो जीव हैरण्यक और हैमवतक क्षेत्रों में व्याप्त जघन्य भोगभूमिमें उत्पन्न होते हैं वे सब वहाँपर एक पल्य लम्बा जीवन व्यतीत करते हैं । यह सब भोगभूमिया जीवन भर समस्त प्रकारके सुखों और भोगोंका रस लेते हैं और आयु पूर्ण होने पर एक छींक या जमायी लेकर ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं और जाकर स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं ।। ६३ ॥ भोगभूमियोंको विशेषताएं भोगभूमिया जीव न तो अपनी प्रशंसा स्वयं करते हैं और न दूसरोंकी निन्दा ही करते हैं, न उन्हें दूसरेके अभ्युदयसे । संक्लेश होता है न वे किसीकी वंचनाके लिए कपट हो करते हैं, न उन्हें अहंकार होता है और न किसी प्रकारका लोभ, स्वभावसे । ही उनका शरीर और भाव प्रशस्त होते है फलतः दोनों लेश्याएँ ( द्रव्य-भाव ) शुभ ही होती हैं । ६४ ॥ [१२७] ये ही सब कारण हैं कि वे मरकर स्वर्ग हो जाते हैं हैं। जिस चक्रवर्तीकी आज्ञाके विरुद्ध कोई शिर नहीं उठा सकता है उसको चौदह रत्नों और दश ऋद्धियोंके कारण जो सुख और भोग प्राप्त होते हैं, तुलना करनेपर भोगभूमिमें प्राप्त भोग और सुख उनकी अपेक्षा अनन्तगुणे होते हैं ऐसा आगम कहता है ।। ६५ ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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