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वराङ्ग
चरितम्
वाय्वाश्रितानां त्रिसहस्रमुक्तं वनस्पतीनां दश वर्णयन्ति । हिकेन्द्रियाणां द्विषडेव वर्षा आयुःप्रमाणं परमं प्रकर्षात् ॥ ४१ ॥ त्रिकेन्द्रियाणां दिनमेकहीनं पञ्चाशद्युक्तं परिमाणमायुः । षण्मासमायुश्चतुरिन्द्रियाणां पञ्चेन्द्रियाणां पृथगेव वक्ष्ये ॥ ४२ ॥ चतुष्पदानामथ कर्मभूमौ जलाश्रितानां च हि पूर्वकोटिः । त्रिशून्यसप्ताहरथाण्डजानां व्यष्टौ सहस्राणि सरीसृपाणाम् ॥ ४३ ॥ अन्तम हतं कथितं तिरश्चां जघन्यमायुम निपुङ्गवेन । कुलप्रसंख्यामथ योनिसंख्यां समासतस्ते कथयामि राजन् ॥ ४४ ॥ आदित्यसंख्या खलु शून्ययुक्तात्कोट्य : कुलानामथ वेदितव्याः (?) । द्वाविंशतिस्तत्र महीमयानां प्रभञ्जनाप्त्वात्मकयोश्च सप्त ॥ ४५ ॥
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वायुमय देहधारी तिर्यञ्चोंकी उत्कृष्ट आयुका प्रमाण तीन हजार वर्ष है, और वनस्पतिकायिक जीवोंकी अधिकसे अधिक दश हजार वर्ष है दो इन्द्रिय जीव अपने पूरे जीवन भर यदि जियें तो वे अधिकसे अधिक (दो छह ) बारह वर्ष ही जीवित रहेंगे ।। ४१॥
अस आयू एक दिन कम पचास वर्षतक तोन इन्द्रिय जीव अधिकसे अधिक जिन्दा रह सकते हैं यदि उनका जीवन किसी विघ्न बाधासे अकालमें ही नष्ट न कर दिया जाय । चार इन्द्रिय जीवोंकी बड़ीसे बड़ी आयु छह मास हो सकती है और पञ्चेन्द्रियोंकी आयुको अलग-अलग वर्गकी अपेक्षा कहता हूँ।। ४२॥ .
कर्मभूमिज तिर्यञ्च कर्मभूमिमें उत्पन्न चोपायों तथा जलमें रहनेवालों ( जलचरों) की उत्कृष्ट आयुका प्रमाण एक पूर्वकोटि वर्ष है। अण्डज जीवोंकी उत्कृष्ट वयका प्रमाण भी (तीन शन्य सहित सात अर्थात् ) सात सौ वर्ष है तथा पृथ्वीपर छातीके बल रेंगनेवालों (सरीसृपों) की अधिकसे अधिक आयु [ त्रिगुणित आठ अर्थात् ] चौबीस हजार वर्ष प्रमाण है ॥ ४३ ।।
तपस्वियोंके मुकुटमणि केवली भगवान्ने तिर्यञ्चोंकी जघन्य आयुका प्रमाण केवल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण कहा है, हे राजन् ? पूर्वोक्त प्रकारसे तिर्यञ्चोंकी आयुको गिनाकर अब आपको उनके कुलों तथा योनियों (जन्मस्थानों की संख्या भी अति संक्षेपमें बतलाता हूँ ॥ ४४ ॥
कुलयोनि तिर्यञ्चोंके समस्त कुलों या श्रेणियोंकी संख्या ( १९७५९००० कोटि ), सूर्योकी संख्यामें शून्ययुक्त कोटिसे गुणित होने१. क वर्षान् । २. म सप्तद्विकमण्ड । ३. म भुजङ्गमे षड्गुणिताश्च सप्त ।
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