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________________ वराङ्ग चरितम् तिस्रस्त वेद्यस्त्वनलाश्रितानामष्टोत्तरा विशतिरध्रिपानाम् । द्विकेन्द्रियाणां विहिताश्च सप्त अष्टौ पुनस्त्रीन्द्रियदेहिनां च ॥४६॥ नव प्रदिष्टाश्चतुरिन्द्रियाणां सरीसृपाणां च नव प्रणीताः । अर्धत्रयोक्ता दश तोयकानां विहङ्गमानां खलु षड्विकघ्नाः॥४७॥ चतुष्पदानां दश संप्रदिष्टाः पञ्चोत्तरा विशतिराधगत्याम् । षडविशतिर्देवनिकायजानां चतुर्दशोक्तास्त्वथर मानुषाणाम् ॥ ४८॥ चतुगतीनां च निगोदजोवा अवस्थिता ये च निगोदतायाम् । भूवायुतोयाग्निमतां च सप्त योनीसहस्राणि शताहतानि ॥ ४९ ॥ । है पर आती ] उनमें से पृथ्वीकायिक जीवोंके कुलकोंकी संख्याका प्रमाण बाईसलाख कोटि प्रमाण है, जलमय और वायुमय शरीरधारियोंके कुलोंका प्रमाण सात लाख कोटि है ।। ४५ ॥ अग्निमय शरीरधारी जोवोंकी कुल संख्या तीन लाख कोटि है तथा वनस्पतिकायिक समस्त जीवोंके कुलोंकी संख्या आठ अधिक बीस अर्थात् अट्ठाईस लाख कोटि प्रमाण है, दो इन्द्रियधारी जीवोंके कुलोंकी गणना सात लाख कोटि है, इसी प्रकार तीन इन्द्रिय युक्त जीवोंके कुलोंका प्रमाण आठ लाख कोटि है ।। ४६ ।। और चार इन्द्रिय जीवोंकी कूल-संख्या भी नौ लाख कोटि प्रमाण है, पञ्च इन्द्रिय जीवोंमें सरीसृपोंके समस्त कुलोंको नौ लाख कोटि गिनाया है, जलचरोंके कूलोंका प्रमाण अर्ध हीन तोनके अर्थात् ढाईयुक्त दश ( साढ़े बारह ) लाख कोटि है, A आकाशचारियों ( नभचरों ) के कुलोंकी संख्या [ द्विगुणित छह ] बारह लाख कोटि है ।। ४७ ।। और चोपायोंकी कुल संख्याका आगमोंमें दश लाख कोटि प्रमाण दी है, प्रथम गति ( नरक गति ) में उत्पन्न तिर्यञ्चोंकी कुल संख्या पाँच अधिक बीस लाख कोटि है, देवोंके विमानोंमें जन्म लेनेवालोंके कुलोंकी संख्या छब्बीस लाख कोटि है तथा मनुष्योंमें होनेवालोंके कुलोंकी संख्या केवल ( द्विगुणित छह ) बारह लाख कोटि है ।। ४८ ॥ चारों गतियों अर्थात् नरक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोकमें भरे हुए निगोदिया जीवों तथा अनन्त निगोदतामें पड़े हुओंकी तथा पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक जीवोंकी योनियोंकी संख्या [ सात गुनी सौ हजार अर्थात् ] सात - सात लाख है ।। ४९ ।। [११०] १. [षद्विकष्न:]। २. म पद्भि ( षड्भि ?) द्विकम्नास्त्वय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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