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षष्ठः
वराङ्ग चरितम्
सर्गः
सामान्यचमचमचERRIGITAL
कूटाक्षवृत्ते कुटिलस्वभावाः स्तनप्रयोगैश्च दुरोहिता ये। परोपघातं जनयन्ति ये तु ते यान्ति जीवास्तु गति तिरश्चाम् ॥ ३७॥ सुसंयता वाग्भिरधिक्षिपन्तो ह्यसंयतेभ्यो ददते सुखाय (?)। तिर्यमुखास्ते च मनुष्यकल्पा द्वीपान्तरेषु प्रभवन्त्यभद्राः ॥ ३८ ॥ केचित्पुनर्वानरतुल्यवक्राः केचिद्गजेन्द्रप्रतिमाननाश्च । अश्वानना मेण्ढ़मुखाश्च केचिदजोष्ट्रवक्रा महिषोमुखाश्च ॥ ३९ ॥ द्वाविंशतिवर्षसहस्रमायुर्वदन्ति तज्ज्ञा वसुधाश्रितानाम् ।
ज'लाश्रिता(?) सप्तसहस्रमानं दिनत्रयं विद्धयनलाश्रितानाम् ॥ ४० ॥ हैं और भोले लोगोंको अकारण ही ठगते हैं, समझिये वे तिर्यञ्च गतिसे ही प्रेम करते हैं जहाँपर विवश होकर उन्हें जाना पड़ता है और अनन्त कष्टोंको सहते हुए भी चिरकालतक रहना पड़ता है ।। ३६ ।।
जिन प्राणियोंके स्वभाव महा कुटिल हैं तथा जिन्हें छल कपट या जुआ आदि खेलनेके अतिरिक्त अन्य कार्य रुचता ही नहीं है, चोरी कराकर अथवा चोरीका माल खरीदकर जो अपनी अभिलाषाओंको पूर्ण करनेकी दुराशा करते हैं, जो दूसरोंके वध या नाशके लिए प्रेरणा देते हैं वे सबके सब कर्मों के आधीन होकर तिर्यञ्च गतिकी सैर करते हैं ।। ३७ ॥
कुभोगभूमि जन्मकारण सर्वसाधारणके हितैषी संयमी पुरुषोंका जो लोग व्यंग वचन बोलकर तिरस्कार करते हैं तथा दुराचारी असंयमी पतितोंको आश्रय देकर सुख देनेमें जो गौरव समझते हैं वे हो प्राणी महाद्वीपोंकी दिशाओं और विदिशाओंमें स्थित छोटे-छोटे द्वीपोंमें अशुभरूप लेकर उत्पन्न होते हैं । वहाँपर देखनेसे वे मनुष्यसे ही लगते हैं लेकिन उनके मुख पशुओंके होते हैं ॥ ३८॥
इन लोगोंमेंसे कुछ लोगोंके मुख वैसे ही होते हैं जैसा कि बन्दरका मुख, दूसरे लोगोंको मोटे ताजे स्वस्थ हाथीका सा सूडदार मुख प्राप्त होता है, अन्य लोगोंकी गर्दनपर घोड़ेका मुख शोभा देता है तो कुछ लोगोंकी मुखाकृति मेढ़ेकी होती है। । इतना ही नहीं उनमें ऊँट समान मुखों और भैसा मुखोंकी भी कमी नहीं होती है ।। ३९ ।।
स्थावर आयु तिर्यञ्च गतिके विशेषज्ञोंका मत है कि पृथ्वी शरीरवाले तिर्यञ्चोंकी अधिकमे अधिक आयु बाईस हजार वर्ष है, जलकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु सात हजार वर्ष प्रमाण है, अग्निमय रहनेवाले ( अग्निकायिक ) जीवोंकी आयु केवल तीन दिन प्रमाण है।। ४० ।। ३. क जलाना
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